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अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

उसका साथी गया, वह एकदम नया कैनवास ले आया और रंग की भरी हुई टयूब ले आया, लाकर सामने रख दिया और कहा, अब आपकी जो मर्जी हो--दस पांच डालर, वह दे जाएं और ले जाएं। यह आपका पोट्रेट रहा। वह करोड़पति कहने लगा, क्या मजाक करते हैं? रंग और कैनवास को ले जाकर मैं क्या करूंगा?

पिकासो ने कहा, फिर याद रखें, चित्र रंग और कैनवास का जोड़ नहीं है, उन दोनों से कुछ ज्यादा है। रंग और कैनवास के द्वारा हम उसको उतारते हैं जो रंग और कैनवास नहीं है। रंग और कैनवास सिर्फ अपर्चुनिटी है, अवसर है। उनके माध्यम से हम उनको प्रकट करते हैं जो कि रंग और कैनवास के बाहर है और रंग और कैनवास से जिनका कोई संबंध भी नहीं है। हम दाम उनके मांगते हैं, और अब पांच हजार में निपटारा नहीं होगा, पचास हजार देते हों तो ठीक है। अब यह बिक्री नहीं होगा। पचास हजार डालर उस चित्र के दिए गए। वह उसे पांच डालर की चीज न मालूम पड़ती थी, वह पचास हजार डालर की कैसे दिखायी पड़ी? दिखाई पड़ती इसलिए कि अगर चीजों को हम तोड़कर देखें तो दो कौड़ी की हो जाती हैं और उन्हें जोड़कर देखें तो उनमें एक अदभुत अर्थ प्रकट हो जाता है।

जीवन में अगर दुःख और निसार और असार साधना हो तो तोड़कर देख लें पूरी जिंदगी को, सब व्यर्थ हो जाएगा। और अगर जिंदगी में परमात्मा को खोजना हो तो एनालिसिस नहीं सिंथीसिस चीजों को जोड़कर देखना है। और ग्रेटर टोटलिटी में, और बडी समग्रता में, और बडी समग्रता में चीजों को जोड़कर देखना है। अंततः एक पूरी इकाई में जिस दिन सारी चीजों को जोड़कर देखी जाती हैं उस दिन परमात्मा प्रकट हो जाता है।

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