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अंतिम संदेश

खलील जिब्रान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9549

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विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश

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और एक दिन, जबकि फिरदौस नाम का एक यूनानी उस बगीचे में सैर कर रहा था, उसको पैर में अचानक एक पत्थर से ठोकर लग गई और वह क्रुद्ध हो उठा। घूमकर उसने पत्थर को उठा लिया और धीमे स्वर में बोला, "ओ मेरे रास्ते में मर्त्य वस्तु?" और उसने पत्थर को उठाकर दूर फेंक दिया।

और अनेकों में एक ओर सबके प्रिय अलमुस्तफा ने कहा, "तुम यह क्यों कहते हो, 'ओ मर्त्य वस्तु?' तुम इस बगीचे में काफी समय से हो और यह भी नहीं जानते कि यहां मर्त्य वस्तु कोई नही हैं। सभी वस्तुए दिन के ज्ञान और रात्रि के वैभव में जीवित है और जगमगाती हैं। तुम और यह पत्थर एक हो। केवल हृदय की धड़कनों में अन्तर है। तुम्हारा हृदय थोडा़ अधिक तेज धड़कता है। है न, मेरे मित्र? किन्तु यह पत्थर भी तो इतना निश्चल नहीं है।”

"इसकी लय एक दूसरी लय हो सकती है। किन्तु मैं तुमसे कहता हूं कि यदि तुम अपनी आत्मा की गहराइयों को खट-खटाओ और आकाश की ऊंचाई को नापो, तो तुम्हें केवल एक ही संगीत सुनाई पड़ेगा और उस संगीत में पत्थर औऱ सितारे मिलकर गायेंगे, एक-दूसरे के साथ, पूर्णतः एक होकर।”

"यदि मेरे शब्द तुम्हारी समझ तक नहीं पहुंचते, तो प्रतीक्षा करो, तबतक जबतक कि दूसरा प्रभात आये। यदि तुमने इस पत्थर को इसलिए कुचला है कि तुम अपने अन्धेपन में इससे टकरा गए थे, तब क्या तुम एक सितारे को भी, जिससे कि तुम्हारे मस्तक की मुठभेड़ हो जाय कुचल दोगे? किन्तु मैं जानता हूं वह दिन आयेगा जबकि तुम पत्थरों और सितारों को ऐसे चुनते फिरोगे, जैसे कि एक बच्चा कुमुदिनी के फूलों को चुनता है, और तब तुम जानोगे कि इन वस्तुओं में जीवन और सुगन्ध है।"

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