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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

एक ईसाई धर्मगुरु, कुछ छोटे से बच्चों के स्कूल में उन्हें नैतिक साहस की शिक्षा देता था, मारल करेज के बाबत कुछ बातें सिखाता था। तीस बच्चे थे। उस धर्मगुरु ने कहा कि नैतिक साहस होना चाहिए। एक बच्चे ने पूछा, हम समझते नहीं हैं नैतिक साहस क्या है, आप हमें समझाएं। तो उसने कहा, समझ लो, तुम तीस ही बच्चे एक रात एक जंगल में पिकनिक के लिए गए हो। फिर दिनभर की भाग-दौड के बाद, घूमने-फिरने के बाद रात में सराय में रुके हो। थक गए हो। उन्तीस बच्चे--सर्द रात है, अपने कंबलों को ओढ़कर सो जाते हैं। लेकिन उनमें से एक बच्चा एक कोने में बैठकर रात की प्रार्थना करता है। तीस बच्चे--सर्दी है कडकडाती हुई, दिनभर के थके हुए, उन्तीस बच्चे जाकर अपने कमरे में कंबल ओढ़ लेते हैं, सो जाते है़, बिना प्रार्थना किए रात्रि की, लेकिन एक बच्चा उस सर्द रात में थका हुआ भी, घुटने टेककर परमात्मा से रात की प्रार्थना करता है। उस बच्चे में मारल करेज है, उस बच्चे में नैतिक साहस है। उस वक्त कितनी तीव्र टेंपटेशन है उसे--सब सोने जा रहे हैं, सर्द रात है, लेकिन वह अकेला होने की हिम्मत करता है। महीने भर बाद वह पादरी फिर वापस लौटा। उसने उन बच्चों से कहा, मैंने नैतिक साहस के संबंध में तुम्हें समझाया था, क्या तुम मुझे बता सकोगे कि नैतिक साहस क्या है? एक बच्चे ने कहा, समझ लें, आप जैसे तीस पादरी एक रात एक ही सराय में ठहरते हैं।

उन्तीस पादरी प्रार्थना कर रहे हैं, एक पादरी कंबल ओढ़कर शान से सो जाता है। उसको हम नैतिक करेज, उसको हम नैतिक साहस कहते हैं।

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