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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

कैंसर बहुत बड़ी बीमारी नहीं है। गुलामी उससे बहुत बड़ी बीमारी है। क्योंकि कैंसर केवल शरीर को नष्ट करता है, गुलामी आत्मा को नष्ट कर देती है। और हम सब गुलाम हैं, इसलिए हमारी आत्माएं नष्ट हो गई हैं।

इसलिए नहीं आत्माएं नष्ट हो गई हैं कि आप मंदिर नहीं जाते हो। क्या बेवकूफी की बातें हैं। कोई मंदिर नहीं जाएगा इससे आत्मा नष्ट हो जाएगी। इससे आत्मा नष्ट नहीं हो गई कि आप रोज सुबह धर्म-ग्रंथ नहीं पढ़ते हो। धर्म-ग्रंथ पढ़ने से आत्माएं बचती होतीं तो बहुत सरल नुस्खा था। इसलिए भी आत्मा नष्ट नहीं हो गई कि आप यज्ञोपवीत नहीं पहनते, टीका नहीं लगाते, चोटी नहीं रखते। अगर इतना सस्ता मामला होता आत्मा को बचाने का, तब तो हमने दुनिया की आत्मा कभी की बचा ली होती।

आत्मा इसलिए नष्ट नहीं हो गई, आत्मा इसलिए नष्ट हो गई कि आप एक गुलाम हो। और गुलामी में आत्मा के फूल नहीं खिलते हैं। आत्मा के फूल खिलते हैं स्वतंत्रता में, स्वतंत्रता की भूमि में। गुलाम आदमी के भीतर आत्मा नहीं विकसित हो सकती। और हम सब गुलाम हैं। क्या इस गुलामी को आप देखेंगे - मन होगा कि इसको देखें ना।

कुछ तरकीबें, कुछ तर्क सुझाकर इसको देखने से बच जाएं। क्योंकि देखने के बाद फिर आपको परिवर्तन से गुजरना अनिवार्य हो जाएगा। तो आप अपने मन को पच्चीस जस्टीफिकेशन खोजकर, न-देखने के लिए राजी करने की कोशिश करेंगे कि न देखें। हमेशा आदमी उन चीजों से आँख बद कर लेना चाहता है, जिनको देखने से परिवर्तन का डर होता सुतुरमुर्ग अपने सिर को छिपा लेता है रेत में शत्रु को देखकर। जब शत्रु दिखाई नहीं पड़ता तो वह सोचता है, जो दिखाई नहीं पड़ता वह है ही नहीं। लेकिन दिखाई न पड़ने से शत्रु नष्ट नहीं होते।

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