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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

कभी आपने देखा आकाश में सांझ को, चीलें आकाश से उतरती हैं, तब उनको देखा। वे परों को फैलाकर अत्यंत विश्राम में हवा पर डोलती हुई धीरे-धीरे उतरती आती हैं। कभी खयाल किया कभी चीलों के पर देखे तुले हुए--न तो पख हिल रहे हैं, न वे हवाओं में तैरने की कोशिश कर रही हैं, उन्होंने सिर्फ पंख छोड दिए हैं और हवाओं पर सवार हो गई हैं, हवाएं उन्हें धीरे-धीरे नीचे उतारती ला रही हैं।

सारी प्रकृति इसी भांति विश्राम में जी रही है, सिर्फ मनुष्य को छोड़कर। मनुष्य अति तनाव में है। और उसे खयाल भी नहीं है कि इतना तना हुआ होना, इतना व्यस्त, इतना उलझा हुआ होना ही उसे वंचित कर रहा है किसी सत्य को, किसी आनंद को जानने से।

तो इन तीन दिनों में अत्यत शांत और अव्यस्त--जैसे आप कोई काम नहीं कर रहे हैं, विश्राम कर रहे हैं। इन तीन दिनों को सब भांति आध्यात्मिक छुटटी के दिन बना लें, स्प्रीचुअल हाली-डे समझ लें। साधारणतः छुट्टी हम मनाते हैं, वह भी शरीर की छुटटी होती है, मन की छुटटी नहीं होती। इन तीन दिनों में मन को भी छुटटी दे दें। इस भांति जिएं, जैसे कोई भी काम नहीं है। और यहाँ क्या काम है आप बिलकुल बिना काम हैं यहाँ। और न तीन दिनों को बिलकुल ही ऐसे गुजार देना है, जैसे कोई सो कर, विश्राम करके गुजार देता है।

तो इन दिनों में आप पाएंगे आपका मन एक नई ताजगी, ऊर्जा और शक्ति से भर गया। और यह शक्ति बहुत जरूरी है। इस शक्ति के बिना कोई रास्ता नहीं है कि आप तय कर सकें। लेकिन अव्यस्त होना जरूरी है। कोई आक्युपाइड चित्त की दशा न हो।

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