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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

एक और मित्र ने पूछा है--कि मैंने कहा कि शास्त्रों में सत्य नहीं है, तो फिर मेरी किताबें क्यों हैं? क्यों बेची जाती हैं? क्यों लोगों को दी जाती हैं?

वे शास्त्र और किताब के फर्क को नहीं समझ पाए। किताबों के विरोध में मैं नहीं हूँ। गीता एक किताब हो, तो ठीक। कुरान एक किताब हो, तो ठीक। जिस दिन कोई किताब शास्त्र बनती है, उसी दिन से खतरा शुरू होता है।

शास्त्र और किताब में फर्क क्या है?

जब कोई किताब अथारिटी बन जाती है, आप्त बन जाती है--जब कोई किताब यह दावा करती है कि ईश्वरीय है, होली है, पवित्र है--जब कोई किताब यह दावा करती है कि इसमें जो लिखा है, वह त्रिकाल में सत्य है--जब कोई किताब यह दावा करती है कि इससे अन्यथा जो है, वह सब गलत है--जब कोई किताब यह कहती है कि मेरी पूजा करो--जब कोई किताब पूजा पाने लगती है, आप्त बन जाती है, दावे करने लगती है कि जो कुछ है मैं हूँ, यही सत्य है, इस पर श्रद्धा लाने से ही ज्ञान उपलब्ध होगा--तब किताब, किताब नहीं रह जाती, शास्त्र बन जाती है। और शास्त्र खतरनाक सिद्ध होते हैं--किताबें--किताबें तो बहुत निर्दोष हैं। उनमें कोई खतरा नहीं है।

तो ये जो मेरी किताबें हैं, जब तक किताबें हैं, तब तक कोई खतरा नहीं है। लेकिन अगर कुछ नासमझ यहाँ इकट्ठे हो गए, और इनमें से किसी किताब को उन्होंने शास्त्र कह दिया, तो खतरा शुरू हो जाएगा। उस दिन इनको जला देना, इनको एक क्षण बचने मत देना--जिस दिन भी कोई इनको शास्त्र कहे। क्योंकि तब यह मनुष्य को बांधने वाली हो जाती हैं।

एक खलीफा सिकदीरया पहुँचा था। और सिकदीरया के बहुत बड़े विराट पुस्तकालय में उसने आग लगवा दी थी। उस पुस्तकालय में, कहा जाता है संभवतः दुनिया की सर्वाधिक किताबें संग्रहीत थीं। एक बड़ी संपदा थी वह। इतनी पुस्तकें थीं वहाँ कि आग लगाने पर छह महीने तक आग बुझ नहीं सकी। छह महीने तक पुस्तकालय जलता रहा।

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