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गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552

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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


मैंने अपने निवास-स्थान का निरीक्षण किया और प्रतिहार से कहा, ‘‘पंथागार से मेरे वस्त्र तथा बिछौना रखा है। वह लेने के लिए मैं अभी जा रहा हूँ, आने पर मैं राजमाता से मिलने की प्रार्थना करना चाहता हूँ। यह कैसे हो सकेगा?’’

‘‘इसकी आप चिन्ता न करें। राजकुमारजी ने माताजी को सन्देश भेज दिया है कि आपसे परामर्श करें। राजमाता अपनी सुभीते के अनुसार आपको बुला लेंगी।’’

मुझको विश्वास हो गया कि देवव्रत निश्चित ही एक योग्य शासक है। इस पर मुझको देवेन्द्र का यह कथन स्मरण हो आया कि देवव्रत के राज्य-भार सँभालने से यह राज्य-परिवार नाश से बच भी सकता है। इस पर भी यह एक राज्यक्ष्मा के रोगी की भाँति स्वयं कष्टभोग करेगा और अन्य राज्यों को भी कठिनाई में डाल देगा।

इतना तो मुझको विश्वास हो ही गया कि देवव्रत वास्तव में एक योग्य व्यक्ति है।

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