लोगों की राय

उपन्यास >> अवतरण

अवतरण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

137 पाठक हैं

हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।

4

इस पर भी मुझको इस गृह में रहने का अधिक काल तक अवसर नहीं मिला। मोदमन्ती के एक सुन्दर पुत्र उत्पन्न हुआ और सोमभद्र तथा माणविका उस बालक को लेकर प्रसन्नतापूर्वक मग्न रहने लगे।

मुझको चक्रधरपुर आये दो वर्ष से कुछ ही ऊपर हुए थे कि हस्तिनापुर से सन्देश आया, ‘‘शीघ्र लौट आओ।’’

मैं इस विषय में सुरराज की अनुमति लेना चाहता था। अभी तक मैं देवलोक का ही वेतनधारी सेवक था। हस्तिनापुर वालों ने अभी तक एक टका भी मुझको नहीं दिया था। यहाँ तक कि भोजन-वस्त्र के लिए भी प्रबन्ध करने की उनको चिन्ता नहीं थी। इस कारण कुछ विचारकर मैंने हस्तिनापुर के सन्देश का उत्तर दे दिया। मैंने लिखा–

‘‘मैं आपके आदेशानुसार दो वर्ष से अधिक काल से यहाँ रह रहा हूँ। इस काल में मैं यहाँ दस सहस्त्र स्वर्ण व्यय कर चुका हूँ। मार्ग में यहाँ आने के लिए दो सौ स्वर्ण व्यय हुए थे और लगभग इतना ही मेरे यहाँ से लौटने में व्यय हो जायेगा। यह सब व्यय यहाँ एक भद्र पुरुष से लेकर किया है, अतएव यहाँ से चलने से पूर्व उनका ऋण उतारना है। आप कृपया इतना कुछ शीघ्र भेजने का प्रबन्ध कर दें। इस धन के आते ही मैं यहाँ से चल पड़ूँगा।’

यह पत्र भेज मैंने एक पत्र सुरराज को भी लिख दिया, परन्तु सुरराज का पत्रवाहक और मेरा पत्रवाहक एक-दूसरे को मार्ग में पार कर गये। सुरराज को मेरा पत्र पहुँचने से पूर्व ही, मुझे उनका एक पत्र मिला, जिसमें लिखा था, ‘इन्द्रप्रस्थ’ लौट जाइए। यत्न करिए कि देवव्रत राज्य-भार न सम्भालें। राज्य सत्यवती को स्वयं चलाना चाहिए और आप उसके परामर्शदाता बनने का यत्न करिये।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book