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गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552

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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।

11

‘‘मैंने एक क्षण उनकी ओर देखा और फिर यह जानकर कि यह इन्द्रसभा है, बिना आश्चर्य प्रकट किये आगे बढ़ इन्द्रासन के सम्मुख जा खड़ा हुआ। मैंने अपना दाहिना हाथ ऊँचा कर आशीर्वाद दिया, ‘‘देवाधिदेवदेव लोकाधिपति, सुरराज चिरंजीवी हों। प्रजागण सुख और शांति से प्रसन्नचित्त जीवन व्यतीत करें। मैं महर्षि गवल्गण का पुत्र संजय हूँ।’’

‘‘कैसे आना हुआ है?’’ इन्द्र ने पूछा।

‘‘पूज्य पिताजी ने कहा है कि मैं अपनी सेवाएँ श्रीमान् जी को अर्पण करूँ और आपकी आज्ञा का पालन करूँ।’’

‘‘कौन से शास्त्र का विशेष अध्ययन किया है आपने?’’

‘‘अर्थशास्त्र का।’’

‘‘केवल शास्त्राध्ययन ही किया है अथवा कार्य-ज्ञान भी?’’

‘‘पिताजी ने कार्य-ज्ञान भी कराया है। इस पर भी यह तो नहीं कह सकता कि मैं इसका पूर्ण अनुभवी हूँ।’’

‘‘हस्तिनापुर में कौन राज्य कर रहा है?’’

‘‘श्रीमान् : शान्तनुजी का देहान्त हो चुका है। गंगापुत्र देवव्रत उपनाम भीष्म इस समय वहाँ का राज्य चला रहे हैं। विचित्रवीर्य तीन वर्षों से गन्धवों से युद्ध कर रहा है।’’

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