धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना भगवान श्रीराम सत्य या कल्पनाश्रीरामकिंकर जी महाराज
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साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं
वे बार-बार श्रीराम का वर्णन एक ऐतिहासिक व्यक्ति के रूप में करते हैं, परन्तु ऐसा करते हुए वे इस बात पर भी अत्यधिक बल देते हैं कि श्रीराम मनुष्य नहीं हैं, ईश्वर हैं। श्रीराम के ईश्वरत्व पर उनका जो इतना आग्रह है, वह कभी-कभी साहित्य की दृष्टि से 'मानस' को पढ़ने वालों को बड़ा अटपटा लगता है। आपको ऐसा लगेगा कि भगवान् श्रीराम के चरित्र का कोई भी प्रसंग हो, जिसका गोस्वामीजी वर्णन कर रहे हों और ठीक उस समय जब पाठक या श्रोता उस प्रसंग में तन्मय हो रहा हो, उसी समय गोस्वामीजी एक बात उस वर्णन में जोड़ देते हैं कि श्रीराम ईश्वर हैं। जैसे यदि श्रीराम, लक्ष्मण के लिए विलाप कर रहे हैं या सीताजी के लिए विलाप कर रहे हैं और उसको सुनकर व्यक्ति का हृदय द्रवित होता है तो उसी समय भगवान् शंकर पार्वतीजी से यह कहते हुए दिखायी देते हैं-
उमा एक अखंड रघुराई।
नर गति भगत कृपाल देखाई।। 6/60/18
श्रीराम तो साक्षात् ईश्वर हैं, उन्होंने तो मनुष्य जैसी एक लीला दिखायी। जो लोग 'रामायण' केवल साहित्यिक दृष्टि से पढ़ते हैं, उनको बड़ा विचित्र-सा लगता है। उनको ऐसा लगता है कि जब नाटक में पूरा परिपाक हो रहा होता है, उसी समय गोस्वामीजी इस बात की सूचना दे करके रसोत्पत्ति में बाधक बनते हैं। यह बात उनको इतनी बार दोहराने की आवश्यकता नहीं थी फिर ऐसे समय जब पाठक या श्रोता या वक्ता तन्मय हो रहा है तभी वे यह याद दिला दें कि राम तो ईश्वर हैं। आप गोस्वामीजी की दृष्टि को देखें कि उनका श्रीराम के ईश्वरत्व पर इतना आग्रह क्यों है?
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