धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना भगवान श्रीराम सत्य या कल्पनाश्रीरामकिंकर जी महाराज
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साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं
भगवान श्रीराम - सत्य या कल्पना?
'श्रीरामचरितमानस' के पात्रों पर यदि हम दृष्टि डालें तो सबसे पहले यह जिज्ञासा उत्पन्न होना स्वाभाविक है कि 'रामायण' में जिन पात्रों का वर्णन किया गया है वे पात्र ऐतिहासिक पात्र हैं कि केवल श्रद्धा से निर्मित किये गये हैं? इसका बड़ा ही विलक्षण उत्तर 'श्रीरामचरितमानस' में दिया गया और यदि उस दृष्टि से हम मानस के पात्रों को देखें, उन पर विचार करें, तो शायद वे पात्र हमको और आपको अपने जीवन के अत्यधिक निकट दिखायी दें।
एक ओर 'मानस' में गोस्वामीजी आग्रहपूर्वक यह कहते हैं कि 'श्रीरामचरितमानस' इतिहास है। इसका अभिप्राय है कि यह केवल कल्पना ही नहीं है, केवल मान्यताओं के प्रतीक मात्र ही ये पात्र नहीं हैं, बल्कि ये प्रात्र सचमुच विश्व में अवतरित हुए हैं, विश्व में आये हैं और जिन घटनाओं का वर्णन 'रामायण' में किया गया है, वे घटनाएँ वस्तुत: किसी समय इस देश में हुई थीं, किन्तु उसके साथ वे एक शब्द और भी जोड़ देते हैं और वह शब्द बड़े ही महत्त्व का है और वहीं पर इतिहास और भक्ति के सामंजस्य का एक नया दृष्टिकोण हमारे-आपके सामने आता है। उन्होंने 'मानस' के उत्तरकाण्ड में यह कहा कि-
कहेउँ परम पुनीत इतिहासा। 7/125/1
मैंने परमपवित्र इतिहास कहा। इतिहास के साथ परमपुनीत शब्द जोड़ करके इतिहास की अपेक्षा कुछ विलक्षणता 'मानस' में बतलायी गयी। इतिहास की दृष्टि और भक्ति की दृष्टि में यही एक मुख्य अन्तर है। 'रामचरितमानस' को पढ़ते समय आपकी दृष्टि इस ओर जानी चाहिए कि इतिहास के पात्रों के साथ यह समस्या जुड़ी हुई है कि वे किसी एक काल के पात्र होते हैं और इतिहास में जो पात्र कभी आ चुके हैं, उन्हें हम आज देखने में असमर्थ हैं, वे आज नहीं हैं। इतिहास शब्द का अर्थ यदि किया जाय तो-
इति ह आस।
अर्थात् ऐसा वस्तुत: हुआ था। तो प्रश्न यह है कि 'रामायण' को यदि हम केवल इतिहास मानें तो उसके साथ-साथ हमको यह भी मानना पड़ेगा कि 'रामायण' के जिन पात्रों का वर्णन किया गया है वे पात्र पहले कभी संसार में भले ही रहे हों, लेकिन अब वे भूतकाल में जा चुके हैं, वर्तमान में उन्हें अब देख पाना हमारे लिए सम्भव नहीं है, लेकिन तब गोस्वामी जी एक नयी बात कहते हैं।
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