लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :77
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9556

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

371 पाठक हैं

साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं


तप के लिये मन, संकल्प और उद्देश्य आवश्यक होता है। महाराजश्री की साधना और उनके प्रवचन-साहित्य में इन तीनों का समावेश है। महाराजश्री ने लेखन से प्रकाशन तक शीर्षक में आबद्ध अपने आत्म कथात्मक लेख में लिखा है ''श्रवण, मनन, चिन्तन का यह क्रम चलता ही रहा ...... मैं भी अपनी लेखनी धन्य बनाऊँ ऐसा संकल्प बार-बार आता रहा। श्रीमद्भागवत और श्रीरामचरित मानस दोनों ही भगवान् के वांग्मय विग्रह हैं और प्रवचन लेखन वे पुष्प हैं जो उनके चरणों में अर्पित किये जाते हैं।''

इस प्रकार उनका साहित्य वाड्मयी आराधना ही है जिसमें वे लिखते हैं - संसार में मनुष्य जीवन में जितने भी दुख हैं उन सबके कारण रूप में मनुष्य के भीतर विद्यमान राग, द्वेष और भेदबुद्धि भी है। ......संसारी व्यक्ति का अपना दुःख और अपना सुख होता है। संसारी व्यक्ति 'स्व' के सुख में सुखी होता है और 'पर' के सुख में दुःखी होता है। कभी-कभी 'पर' के दुख से प्रसन्न भी होता है किन्तु साधु अथवा संत अपने दुःख से नहीं 'पर' ( दूसरे ) के दुःख से दुखी होता है यही दोनों में अंतर है। संतत्व के पर्याय परम पूज्य पं. रामकिंकर जी महाराज के आदर्शों का अनुगमन करते - हुये पूज्य दीदी मंदाकिनी श्री रामकिंकर जी जहाँ राम-कथा मंचो से आज पूरे देश में राम कथा अमृत का पान करा रही हैं वहीं वे महाराजश्री के साहित्य को जन-जन तक पहुँचाने के लिए निरंतर प्रयासरत भी हैं। यह शाश्वत परम्परा वंदनीय है। महाराजश्री की साधना से सुवासित और संतत्व की गरिमा से मण्डित राम-साहित्य आपके जीवन-पथ को सुगम और सारगर्भित बनाने की रहस्यानुभूतियाँ तो करायेगा ही सभी प्रकार से मंगलकारी भी सिद्ध होगा।

राम-कथा की इस शाश्वत परम्परा को प्रणाम निवेदित करते हुये -

गुरु चरण अनुरागी
डी. सत्यनारायण 'प्रसाद' जबलपुर

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book