लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :77
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9556

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

371 पाठक हैं

साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं

वन्दनीय शाश्वत परम्परा


विश्व आज भयानक सांस्कृतिक संकट से गुजर रहा है। इस सोचनीय अवस्था से मुक्त होने का साधन साहित्य ही हो सकता है, क्योंकि साहित्य में ही जन-मानस को परिष्कृत करने और रचनात्मक दिशा-दर्शन की क्षमता होती है। त्रिकालज्ञ ऋषियों की आप्त वाणी से लेकर आज तक श्रेष्ठ साहित्य ही मानव-मुक्ति और मानवीय विकास साधना का आधार बनता रहा है।

प्रभु श्रीराम भारतीय संस्कृति के प्राण-पुरुष और सनातन सत्य हैं। इसे संयोग ही कहा जा सकता है कि उनका अवतरण और विजयोत्सब दोनो ही 'बसंत' के उजियारे पखवारे (शुक्ल पक्ष ) में होता है और दोनो पखवारे 'शक्ति' की आराधना के पखवारे हैं।

मंगल के अधिष्ठान प्रमु श्रीराम के स्मरण मात्र से परायापन दूर हो जाता है। गोस्वामी तुलसीदास जी भी कहते हैं ''अपनो भलो, राम नामहि तें, तुलसी समझि परो '' यही कारण है कि उनका काव्य अपनाब (अपनेपन/आत्मीयता) का काव्य है। वे संसार को ही सियाराम मय मानकर प्रणाम भी करते हैं। जिसे राम से प्रेम है वही सत है और सबका प्रेम-पात्र भी।

परम पूज्य पं. रामकिंकर जी महाराज जिनका सारा जीवन ही श्रीराम की कृपा से संचालित हुआ, उन्होने 'शील सिन्धु राघव, माधुर्य मूर्ति माधव' ग्रंथ में 'अपनी बात' शीर्षक के अंतर्गत स्पष्ट रूपेण लिखा है कि ''श्रीराम और श्रीरामचरित मानस से मेरा परिचय कितना पुराना है मेरे लिये बता पाना संभव नहीं है।'' युग-तुलसी की संज्ञा से विभूषित महाराजश्री ने 'मानस मुक्तावली' की भूमिका में स्वीकार किया है कि - ''मैं स्वयं को तुलसी के अंतरमन से इतना जुड़ा हुआ पाता हूँ कि घूम-फिर कर मैं स्वयं को भी उसी मन:स्थिति में एकाकार कर लेता हूँ।'' विचारणीय यह है कि महाराजश्री ने इस सबके वाबजूद भी अपने आध्यात्मिक चिंतन और सत्यानुभूतियों से यह सिद्ध किया है कि परम्परा पूर्ववरता नहीं है। परम्परा तो अग्रसरीय होती है उसमे सृजन का गति-सातत्य तो होता ही है नवीनता भी परिलक्षित होती है इसीलिए महाराजश्री के साहित्य में तथ्य, सत्य और ये दोनों ही कथ्य के रूप में मूर्तिमान है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai