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धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :77
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9556

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साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं


इस सन्दर्भ में मुझे एक बात नहीं भूलती, जो मुम्बई से सम्बन्धित है, बल्कि कहना यह चाहिए कि वह मेरी मुम्बई की प्रथम यात्रा का अनुभव था। वहाँ श्रीनिकेतन वाटिका में रामायण सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसमें एक केन्द्रीय मन्त्री उद्घाटन करने के लिए बुलाये गये थे। उन्होंने उद्घाटन करते हुए एक प्रश्न हमारे सामने रखा। उन्होंने कहा कि 'वाल्मीकि रामायण' में और 'श्रीरामचरितमानस' में अन्तर यह है कि वाल्मीकि ने श्रीराम के मनुष्य रूप पर, उनकी मानवता पर बल दिया है और तुलसीदास ने श्रीराम के ईश्वरत्व पर। इसके साथ-साथ उन्होंने अपनी सम्मति जोड़ दी कि मेरी दृष्टि में वाल्मीकि का दृष्टिकोण लोक के लिए अधिक उपादेय है, अधिक कल्याणकारी है। तुलसीदासजी का ग्रन्थ महान् होते हुए भी जब हम रामकथा को इस दृष्टि से पढ़ते या सुनते हैं कि श्रीराम ईश्वर हैं तो हम उनसे कुछ सीख नहीं सकेंगे। इसलिए लोक कल्याण के लिए उन्हें मनुष्य स्वीकार करना अधिक अच्छा है।

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