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धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :77
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9556

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साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं


मुझे भी कुछ बोलना था और भई ! अपना तो एक पक्ष है तथा उसे मैंने स्पष्ट किया, तब मैंने एक प्रश्न उस समय उनको निमित्त बनाकर सभी लोगों के सामने रखा कि हमारे इतिहास में सिर्फ श्रीराम ही तो नहीं हैं? 'रामायण' को उठाकर देखें, इतिहास के ग्रन्थों को उठाकर देखें तो न जाने कितने इतिहास पुरुष हमारे इतिहास में मिलेंगे। जैसे- मनु, इक्ष्वाकु, दिलीप, रघु, अज, भरत। ये सबके सब जो पात्र हैं, ये इतिहास-पुरुष हैं और इनका वर्णन जो पुराणों ने किया है, वह मनुष्य के रूप में ही किया है। पुराण ग्रन्थों में ऐसा ही लिखा गया है कि ये मनुष्य हैं और मैंने श्रोताओं को और उन मन्त्री महोदय को भी स्मरण दिलाया कि हम दूर क्यों जायँ? वर्तमान युग में ही महात्मा गाँधी हुए और उनको भी हम लोगों ने मनुष्य के रूप में ही स्वीकार किया। मैंने पूछा कि मनु-इक्ष्वाकु से लेकर महात्मा गाँधी पर्यन्त जितने भी महान् मनुष्य हुए, उनमें से आपने किसी से नहीं सीखा और एक राम भी मनुष्य हो जाते तो आप सब सीख लेते! इतनी बड़ी बुद्धिमत्ता तो ठीक नहीं। सीखने के लिए इतने मनुष्यों का चरित्र कम है क्या? कि इसके लिए यह कह दिया जाय कि राम के मनुष्यत्व के बिना हमारे लिए चरित्र का अभाव हो गया है और चरित्र के उदाहरण के लिए पात्र नहीं रहे, वस्तुत: ऐसा नहीं है।

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