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धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :77
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9556

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साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं


'रामायण' के पात्रों को केवल पढ़ना और सुनना ही नहीं है, बल्कि उसमें हमें भी स्वयं 'रामायण' का पात्र बन जाना है। अपने जीवन में इस सत्य को समझ लेना है कि इस समय राम का विवाह हो रहा है और हम उसमें सम्मिलित हो रहे हैं। मैं श्रीराम का विवाह इन आँखों से देख रहा हूँ कि कन्यादान हो रहा है और दूसरी भी एक बात आपने देखी होगी कि जहाँ विवाह की लीला होती है, वहाँ एक पात्र जनक बन जाता है, दूसरा पात्र दशरथ बन जाता है। यह जो व्यक्ति का जनक और दशरथ बन जाना है, यही तो जीवन की समग्रता है। इसका अर्थ है कि जब दशरथ और जनक केवल इतिहास-पुरुष रहें, हम केवल पढ़ें और स्वयं दशरथ और जनक न बन सकें तो हमारे जीवन में समग्रता नहीं आयी, गोस्वामीजी की तथा भक्ति के दृष्टिकोण की सार्थकता नहीं आयी, बल्कि इस सन्दर्भ में मैं एक बात आपके सामने और जोड़ दूँ।

'रामायण' के साथ जो दो अन्य ग्रन्थ हैं, ये 'रामायण' के पूरक ग्रन्थ हैं और ये दो ग्रन्थ हैं, 'विनय-पत्रिका' और 'गीतावली'। ये पूरक ग्रन्थ क्यों हैं? 'रामायण' में भी वही दृष्टिकोण है, लेकिन वही दृष्टिकोण 'विनय-पत्रिका' और 'गीतावली' में और अधिक गहराई से जोड़ दिया गया है। 'गीतावली' की विशेषता क्या है? 'गीतावली' में भी आप उन्हीं लीलाओं का, उन्हीं चरित्रों का वर्णन पढ़ेंगे, जिनका वर्णन 'रामायण' में किया गया है, लेकिन यदि आपने ध्यान से पढ़ा हो और यदि न पढ़ा हो तो अब ध्यान से पढ़िये तो गोस्वामीजी की दृष्टि समझने में आपको सुविधा होगी कि उसमें एक बात ऐसी है कि जो 'रामायण' में उतनी स्पष्ट नहीं होती जितनी 'गीतावली' में है। 'विनय-पत्रिका' में भी यही बात है। वह विशेषता क्या है?  'विनय-पत्रिका' के विषय में आप लोगों ने सुना होगा, पढ़ा होगा कि 'विनय-पत्रिका' के सम्बन्ध में मान्यता यह है कि जब गोस्वामीजी कलियुग से सताये जाने लगे तो युग की समस्याओं से सन्त्रस्त हो करके श्रीराम के नाम उन्होंने एक पत्र लिखा और उसे लेकर श्रीराम की सभा में वे गये। आपने ध्यान दिया ! इसका अभिप्राय क्या हुआ? जब वे यह कहते हैं कि मैं श्रीराम की सभा में पत्र लेकर गया तो उनके श्रीराम की सभा यदि केवल भूतकाल का सत्य ही होती तो राम का जन्म हुआ त्रेतायुग में और तुलसीदास का जन्म हुआ कलियुग में, दोनों के बीच में पौराणिक दृष्टि से लाखों वर्षों की दूरी है।

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