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धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :77
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9556

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साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं


हम श्रीराम के जन्म को या श्रीराम के विवाह को जब प्रत्यक्ष मना रहे हैं तो कौन ऐसा भावुक है जो यह मानकर चल रहा है कि त्रेतायुग में राम का विवाह हुआ था? प्रत्येक भावुक उस समय तो यही मान रहा है कि श्रीराम का विवाह हो रहा है। श्रीराम का जन्म हो रहा है। इसके पीछे हमारा क्या उद्देश्य है? हमारी क्या भावना है? इस पर विचार कीजिए। इसको मैं एक भक्त और भगवान् के बीच संवाद का रूप देकर यों कहता हूँ कि जब एक भक्त विवाहपंचमी के दिन अपने घर में विवाह का मण्डप बनाने लगा, विवाह की तैयारी करने लगा, तब प्रभु को विनोद करने की सूझी तो प्रभु ने पूछा कि मेरा विवाह तो जनक ने बड़े भव्य और दिव्य स्वर्ण-मणि-मण्डप में किया था, बड़ी धूम-धाम से किया था, लेकिन तुम तो यह छोटा-सा मण्डप बना रहे हो अब इस मण्डप की क्या आवश्यकता है? इस छोटे-से मण्डप में जब तुम मेरा विवाह रचाओगे तो क्या तुम्हें कमी की प्रतीति नहीं होगी? तो भक्त ने बड़ा सुन्दर उत्तर दिया कि नहीं महाराज! जनकजी के मण्डप में चाहे जितनी विशेषता रही हो, लेकिन उसके एक कमी रह गयी थी और उसी कमी को पूरा करने के लिए मैं मण्डप बना रहा हूँ।

प्रभु ने बड़े आश्चर्य से पूछा कि महाराज जनक के मण्डप में तुमने कमी निकाल दी ! उनके मण्डप में क्या कमी रह गयी थी? भक्त ने बड़ी मीठी बात कही। भक्त ने कहा कि महाराज जनक के मण्डप में जनक थे, दशरथ थे, अयोध्यावासी थे, मिथिलावासी थे, शतानन्द और वसिष्ठ थे, परन्तु कमी यह थी कि मैं नहीं था। इस विवाह की विशेषता यह है कि इसमें मैं हूँ। आपका विवाह जनक ने किया या दशरथ ने देखा, उस विवाह का वर्णन मात्र पढ़ करके हमको तृप्ति कैसे मिलेगी? हमें तो तृप्ति तब मिलेगी कि जब हम ऐसा अनुभव करें कि आपके विवाह में हम स्वयं सम्मिलित हो रहे हैं। इसका अभिप्राय क्या?

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