धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना भगवान श्रीराम सत्य या कल्पनाश्रीरामकिंकर जी महाराज
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साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं
केवल इतना ही उद्देश्य तुलसीदासजी का नहीं है। तुलसीदासजी क्या चाहते हैं? इस विषय में जो श्रीभरत की दृष्टि है, वही तुलसीदास की दृष्टि है। यदि यह प्रश्न किया जाय कि 'रामायण' में कितने पात्र हैं? तो एक बड़े महत्त्व का प्रश्न यह रहेगा कि किस इतिहास-पुरुष ने किस काल में जन्म लिया? यह तो हम पुस्तकों में पढ़ लेते हैं, परन्तु आपने क्या यह देखा कि श्रीकृष्ण या श्रीराम के सन्दर्भ में हमारी परम्परा क्या है?
हम श्रीराम के जन्मदिन को स्मरण ही नहीं कर लेते कि त्रेता युग में आज के दिन श्रीराम का जन्म हुआ, अपितु परम्परा यह है कि उस दिन मन्दिर सजाया जाता है, घर सजाया जाता है, परदा लगाया जाता है, भगवान् के जन्म की प्रतीक्षा की जाती है और यह बड़ी विचित्र-सी बात है कि हम कहते हैं कि भगवान् का जन्म होगा और वहाँ मन्दिर में दर्शनार्थी जो पूजा के लिए बैठे हुए हैं, वे प्रतीक्षा कर रहे हैं कि भगवान् का जन्म होगा। जब घड़ी में बारह बजते हें, तो वे पाठ करना प्रारम्भ कर देते हैं कि-
भए प्रगट कृपाला।
भगवान् का जन्म हो गया। भगवान् का पूजन करते हैं, आरती उतारते हैं, तो पहले कहते हैं कि भगवान् का जन्म होगा, उसके पश्चात् भगवान् का जन्म हुआ और फिर उनकी आरती उतारी गयी। इतिहास-पुरुष के साथ ये सब बातें जोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है। इतिहास-पुरुष की तो केवल हमको स्मृति करनी चाहिए, लेकिन हम रामनवमी कैसे मनाते हैं? पिछले वर्ष जब मैं अयोध्याजी गया था तो वहाँ विवाह की धूम थी और प्रत्येक मन्दिर में मण्डप बना करके श्रीराम का विवाहोत्सव मनाया जा रहा था। मण्डप कहीं बड़ा भव्य था तो कहीं साधारण था, लेकिन प्रत्येक मन्दिर में बड़ी धूम-धाम के साथ विवाहोत्सव मनाया जा रहा था और फिर वही क्रम कि जिस विधि से विवाह होता है, उसी पूरी विधि से राम का विवाह होते हुए मैंने मन्दिरों में देखा। इसका उद्देश्य क्या है?
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