धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना भगवान श्रीराम सत्य या कल्पनाश्रीरामकिंकर जी महाराज
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साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं
यह कहा जाता है, सुना जाता है, समझ में आता है, पर मनुष्य जाने हुए सत्य को जीवन में उतार नहीं पाता। भाइयों में बड़ा प्रेम होना चाहिए पिता की भक्ति होनी चाहिए या देशभक्ति होनी चाहिए या समाज के प्रति व्यक्ति का यह कर्त्तव्य है, ये पाठ न जाने कितनी बार दोहराये जाते हैं! व्यक्ति के लिए केवल इन पाठों को दोहराने की ही समस्या नहीं है। समस्या यह है कि उसे हम अपने जीवन में उतारें कैसे ! तो मानो गोस्वामीजी ने हमको एक समाधान दिया, एक उत्तर दिया और वह उत्तर यह है कि राम यदि केवल एक मनुष्य होंगे तो हमें प्रेरणा दे सकते हैं, परन्तु मनुष्य में यह सामर्थ्य नहीं है कि वह दूसरों को शक्ति देकर बदल दे ! तो वस्तुत: हमारे आपके जीवन में दो वस्तुओं की आवश्यकता है, एक तो प्रेरणा की और दूसरी प्रेरणा को क्रियान्वित करने वाली शक्ति की। जब गोस्वामीजी यह कहते हैं कि हमारे श्रीराम ईश्वर हैं तो मानो गोस्वामीजी हमें आश्वासन देते हैं कि श्रीराम के चरित्र से हमें केवल प्रेरणा ही प्राप्त नहीं करनी है, अपितु हमें श्रीराम की प्रार्थना करते हुए श्रीराम के ईश्वरत्व से अपने आपको जोड़ करके उसके पश्चात् हमें श्रीराम से यह शक्ति भी माँगनी है कि आपने जो आदर्श चरित्र अपने जीवन में क्रियान्वित किया, उसको चाहकर भी यदि हम नहीं कर पाते हैं तो उसके लिए जब तक आप अपनी कृपा की शक्ति उसके साथ नहीं जोड़ेंगे, तब तक यह सम्भव नहीं हो पायेगा। यदि हम श्रीराम को मनुष्य मानें तो भी यह लाभ तो हमको मिलता ही रहेगा कि हम उनके चरित्र से प्रेरणा प्राप्त करें, परन्तु श्रीराम के चरित्र से हम शक्ति नहीं ले सकेंगे। तब श्रीराम एक भूतकाल के सत्य रहेंगे वर्तमान के सत्य नहीं रहेंगे।
'रामायण' के सन्दर्भ में जब पात्रों की बात आती है तो मैं एक बात और जोड़ दूँ। 'रामायण' में कितने पात्र हैं, उन पात्रों की गणना करना सरल नहीं है, लेकिन तुलसीदासजी जो बात चाहते हैं वह बड़े महत्त्व की बात है। 'रामायण' के पात्र भरत हैं, लक्ष्मण हैं, हनुमानजी हैं, शत्रुघ्न हैं, विभीषण हैं या रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद हैं।
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