लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :77
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9556

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

371 पाठक हैं

साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं


गोस्वामीजी की दृष्टि का अभिप्राय यह है कि कहीं लोग 'रामायण' को केवल इतिहास ही न मान लें। वे यह चाहते हैं कि कोई इसको भूल से कल्पना न मान ले। कई लोग कल्पना मान लेते हैं, परन्तु गोस्वामीजी कहते हैं कि नहीं, यह कल्पना नहीं है। यह तो ठोस सत्य है और वह ठोस इतिहास जो पहले था और अब नहीं है, उसके स्थान पर यह तो एक ऐसा इतिहास है कि जो इतिहास पहले भी था, पहले भी श्रीराम त्रेतायुग में हुए और आज भी श्रीराम विद्यमान हैं। अगर आप ध्यान से देखें तो गोस्वामीजी जिन पात्रों का वर्णन करते हैं, उन पात्रों की विलक्षणता पर यदि आप दृष्टि डालें तो आपको एक बड़ा अनोखा सूत्र मिलेगा और यही तुलसीदासजी की सबसे बड़ी देन है और यही उनका सबसे बड़ा आश्वासन है समाज को और निर्बल व्यक्तियों को। वे कहते हैं कि जो सफल व्यक्ति हैं, सबल व्यक्ति हैं, वे अपने कर्त्तव्य कर्म का ठीक से पालन करें, परन्तु जिनके जीवन में असमर्थता की अनुभूति हो रही है, उसका समाधान गोस्वामीजी करते हैं। 'गीता' में भी यह प्रश्न उठाया गया और आज भी यह प्रश्न बार-बार दोहराया जा सकता है, वह प्रश्न है -
अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुष:।
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजित:।।

-गीता, 3/36


कुछ व्यक्ति तो ऐसे होते हैं कि जो बुराई को जान-बूझकर करते हैं, और ऐसा करने में उनको आनन्द आता है, लेकिन न जाने कितने ऐसे व्यक्ति हैं कि जिनके जीवन में ऐसी प्रवृत्ति नहीं है और वे बुराई से बचना चाहते हैं। उनको बुराई, बुराई ही प्रतीत होती है। अर्जुन ने यही प्रश्न किया कि न चाहते हुए भी जो व्यक्ति जीवन में बुराइयाँ करने के लिए प्रस्तुत हो जाता है, उसके पीछे प्रेरणा देने वाली कौन-सी शक्ति है? और इस समस्या का समाधान क्या हो सकता है? 'गीता' में तो एक सूत्र दिया गया और 'श्रीरामचरितमानस' में इस सम्बन्ध में व्यावहारिक रूप में कई पात्र आपको मिलेंगे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book