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धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :77
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9556

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साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं


तब मैंने भगवान् से भक्ति का दान माँग लिया और भगवान् ने मुझे भक्ति का दान दे दिया। 'रामायण' में दोहराते हैं, कौन भगवान् राम के भाई हैं? कौन पिता है? कौन प्रिया हैं ? कौन मित्र हैं ? बड़ा सुन्दर वर्णन है, लेकिन 'विनय-पत्रिका' में तुलसीदासजी किसके नाते का वर्णन करते हैं? बोले-
ब्रह्म तू, हौं जीव, तू है ठाकुर, हौं चेरो।
तात-मात, गुरु-सखा, तू सब बिधि हितु मेरो।।

-विनय-पत्रिका, 79/3


भगवान् ने पूछा कि तुम मुझसे कौन-सा नाता चाहते हो? बोले कि-
तोहिं मोहिं नाते अनेक,
मैंने तो महाराज! नाते गिना दिये-
तोहिं मोहिं नाते अनेक, मानिये जो भावै।।

-विनय-पत्रिका, 79/4


आपको इन नातों में से जो नाता पसन्द लगे, तुलसीदास से वही नाता आप जोड़ लीजिए। भगवान् ने तुलसीदास से पूछा कि तुम क्यों नहीं पसन्द कर लेते हो नाता? नाते गिनाकर मेरे ऊपर क्यों भार डाल रहे हो कि मैं नाता पसन्द करूँ? गोस्वामीजी ने चरणों को पकड़कर कहा कि महाराज ! इसमें मेरा एक स्वार्थ है। अगर मैं नाता स्वीकार करूँगा तो नाते का कर्त्तव्य मुझी को निर्वाह करना पड़ेगा, पर जब आप नाता स्वीकार करेंगे तो आपको ही निर्वाह करना पड़ेगा, मैं चाहे निभाऊँ, चाहे न निभाऊँ। मैं यदि आपका पुत्र बनूँगा तो मैं पुत्र का कर्त्तव्य-पालन कर पाऊँगा कि नहीं, इसमें सन्देह है, परन्तु यदि आप कहें कि तुम मेरे पुत्र हो तो महाराज ! मैं चाहे पुत्रत्व का निर्वाह कर पाऊँ, चाहे नहीं, पर आपको तो पितृत्व का निर्वाह करना ही पड़ेगा।

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