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धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :77
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9556

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साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं


माँ तो जगा ही रही हैं, लेकिन तुम इतना आग्रह क्यों कर रहे हो? उन्होंने कहा कि महाराज ! माँ को भी चिन्ता है और मुझे भी चिन्ता है और इसीलिए मैं चाहता हूँ कि आप कृपा करके जल्दी से जल्दी उठिए। माँ को यह चिन्ता है कि आप रातभर सोये रहे हैं, उन्हें चिन्ता है कि अब आपको कुछ न कुछ कलेऊ मिलना चाहिए, इसलिए वे चाहती हैं कि आप जल्दी से उठकर मुँह-हाथ धो लें और तब बैठकर कलेऊ करें। माँ को तो आपको कुछ खिलाने की चिन्ता है। भगवान् राम ने पूछा कि क्या मेरी भूख की चिन्ता तुमको भी है और क्या तुम भी मुझे खिलाने के लिए बेचैन हो कि मैं जल्दी से कलेऊ कर लूँ? तुलसीदासजी ने कहा कि मुझे भी चिन्ता है, परन्तु मुझे आपकी चिन्ता नहीं है, मुझे तो अपनी चिन्ता है। तुमको अपनी चिन्ता क्या है ?-
मन भावतो कलेऊ कीजै।
तुलसिदास कहँ जूँठनि दीजै।। -गीतावली, 1/36/5

आप पहले स्वीकार कर लेंगे और पीछे जो बचेगा, तभी मुझे मिलेगा। माँ को आपकी भूख की चिन्ता है, लेकिन मुझे तो अपनी भूख की चिन्ता है। जब आप उठकर मुँह-हाथ धो लेंगे और कलेऊ कर लेंगे, तब जो बचेगा उसी में से तुलसीदास को भी प्रसाद मिलेगा और इसका अर्थ क्या हुआ? इसका तात्पर्य क्या हुआ? 'विनय-पत्रिका' में और 'गीतावली' में सबसे बड़ी विशेषता यह है कि तुलसीदासजी भी रामकथा में एक पात्र हैं।

'रामायण' के पात्रों में कौन केन्द्र में है, यह कहना बड़ा कठिन है। किस पात्र को मुख्यता दी गयी है, यह बताना सरल नहीं है, क्योंकि एक-से-बढकर-एक पात्रों का चित्रण किया गया है, पर  'विनय-पत्रिका' और 'गीतावली' में यदि केन्द्र में कोई मिलेगा तो वे हैं तुलसीदास। श्रीराम होली खेल रहे हैं, तुलसीदासजी ने लिखा कि होली खेलने के साथ-साथ श्रीराम ने दान बाँटा। इस वर्णन के साथ-साथ वे तुरन्त जोड़ देते हैं कि जब श्रीराम दान बाँटने लगे तो तुलसीदास भी उसमें खड़ा हो गया और फिर-
भगति दान तब माँगि लियो।

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