धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना भगवान श्रीराम सत्य या कल्पनाश्रीरामकिंकर जी महाराज
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साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं
'रामायण' में भी घटनाएँ उसी तरह लिखी गयीं और 'गीतावली' में भी एक ही घटना को दूसरी तरह से लिखने की क्या आवश्यकता हे? श्रीराम का जन्मोत्सव अयोध्या में हो रहा है, 'रामायण' में वर्णन हे, लेकिन 'गीतावली' में तुलसीदासजी ने एक बात जोड़ दी उन्होंने कहा कि जब श्रीराम का जन्म हुआ तो स्त्रियों ने यह गीत गाया, यही गीत गाया। तुलसीदासजी से जब पूछा गया कि 'यही गीत गाया' इसका पता आपको कैसे चला? लगता है कि कवि-कल्पना से आप यह सोच रहे हैं कि जब बालक का जन्म होता है तो गीत गाया जाता है। आप कवि हैं, शायद आपने यह कल्पना की कि श्रीराम के जन्म के समय यह गीत गाया गया। तुलसीदासजी ने बड़ी मीठी बात कही। उन्होंने दावा किया कि यह बिल्कुल नहीं है, यह कवि-कल्पना नहीं है। यह बिल्कुल सत्य है कि जब श्रीराम का जन्म हुआ तब यही गीत गाया गया। पूछा गया कि आपको कैसे पता लगा कि यही गीत गाया गया था? तब 'गीतावली' में उनका एक नया दावा हमें मिलेगा वे दावे से कहते हें कि राम के जन्म के समय यही गीत गाया गया? कैसे? बोले कि-
तहँ तुलसिहु मिलि गायेहु।
उन गानेवालियों में मैं भी था, इसलिए मुझसे अधिक कोई नहीं जानता कि श्रीराम के जन्म के समय कौन-सा गीत गाया गया? क्या हुआ? एक नयी बात हो गयी। श्रीराम की लीला में जब तुलसीदास सम्मिलित हो गये और केवल सम्मिलित ही नहीं हुए, उन्होंने गीत भी गाया, तब तो इसका अभिप्राय यह है कि रामकथा के पात्र केवल श्रीभरत, लक्ष्मण और हनुमानजी ही नहीं हैं, तुलसीदास भी एक पात्र हैं और इसी का विस्तार आगे की लीलाओं में भी करते हैं। बहुधा जब गोस्वामीजी लीला का विस्तार 'गीतावली' में करते हैं तो उसमें एक नई बात जोड़ देते हैं। श्रीराम सो रहे हैं, कौसल्याजी जगा रही हैं। तुलसीदासजी लिख सकते थे कि श्रीराम को कौसल्याजी ने जगाया और श्रीराम जग गये, लेकिन कौसल्याजी के साथ-साथ अचानक एक स्वर भगवान् राम के कानों में और चला गया और वह स्वर यह था कि आपको कौसल्या अम्बा इतनी देर से जगा रही हैं, आप जल्दी उठते क्यों नहीं? प्रभु ने मुस्कराकर आँखें खोल दीं कि माँ तो जगा ही रही थीं, यह दूसरा कौन आ गया? उन्होंने पूछा कि तुम कौन हो, मुझे जगाने वाले? बोले कि मैं तुलसीदास हूँ। मेरी माँ जगा रही हैं, कह रही हैं-
जागिये कृपानिधान जानराय रामचन्द्र।
जननी कहै बार-बार भोर भयो प्यारे।।
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