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धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :77
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9556

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साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं


श्रीभरत, गुरु वसिष्ठ, कौसल्याजी, सुमित्राजी आदि लोगों को ही चुन-चुनकर यदि ले गये होते और श्रीराम से मिलाया होता तो मुझे कोई आशा का सन्देश न मिला होता लेकिन जब मैंने देखा कि श्रीभरत के साथ बहुत बड़ी भीड़ जा रही है और जब मैंने उस भीड़ में दृष्टि डाली तो देखा कि कैकेयी भी जा रही हैं, तब मुझे लगा कि श्रीराम के समक्ष मैं भी जा सकता हूँ। जिन्होंने श्रीराम को इतना कष्ट दिया, जिन्होंने श्रीराम को इतनी पीड़ा पहुँचायी और जिनके मन में इतनी स्वार्थपरता आ गयी थी, उन कैकेयी को भी जब श्रीभरत राम के सामने ले जा सकते हैं, तब वे मुझे भी ले जायेंगे। मुझे ऐसा लगा कि श्रीभरत के द्वारा ही मैं श्रीराम के सामने पहुँचा। इसका क्या अभिप्राय है ?

तुलसीदासजी का मूल सूत्र वही है कि इन पात्रों को वर्तमान काल मंक देख करके ही हम आगे चलें। यदि केवल कौसल्या और सुमित्रा ही हों और कैकेयी न हों तब तो हमको केवल निराशा ही होगी कि हमारे लिए आशा का कोई सन्देश ही नहीं है, पर नहीं, ऐसा नहीं है। कैकेयी भी एक पात्र हैं। दूसरी ओर लंका में भी ऐसे पात्र हैं इसका प्रतीकात्मक संकेत जो दिया गया है, वह मारीच के सन्दर्भ में दिया गया है। मारीच जंगल में रहता है, रावण से उसका सम्बन्ध है और एक बार वह श्रीराम के बाण का प्रभाव देख चुका है। इसलिए श्रीराम से वह भयभीत है। मारीच वेश बदलने की कला में अत्यन्त निपुण है। रावण यही प्रस्ताव लेकर आया हुआ था कि तुम स्वर्णमृग बन जाओ, जिससे मैं जनकनन्दिनी सीता का हरण कर सकूँ। जब रावण ने अपना यह प्रस्ताव मारीच के सामने रखा तो मारीच रावण को समझाने लगा कि यह प्रस्ताव अनुचित है और तुम्हें ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए। मारीच कौन है?

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