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धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :77
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9556

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साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं


समाज का दुःख, दैन्य एवं दरिद्रता को अपने यश के द्वारा कौन दूर करता? कौन तपस्या और धर्म का तत्त्व अपने जीवन में दिखाता? लेकिन समाप्ति यह नहीं है। समाप्ति करते हुए अन्त में गोस्वामीजी यह कहते हैं कि भरत का जन्म यदि न हुआ होता तो यह काम कैसे होता? तो लोगों को यह भ्रम हो जायेगा कि शायद उस युग के लोगों को भरत की कमी खलती, परन्तु आज के युग में तो भरत की कोई आवश्यकता नहीं, परन्तु गोस्वामीजी यह कहते हैं कि यह बात बिल्कुल नहीं है। यदि श्रीभरत का जन्म न हुआ होता तो सबसे बड़ी हानि जो होती, वह तो मेरी होती। पूछा गया कि आप तो थे ही नहीं त्रेतायुग में, फिर आपकी क्या हानि और आपको क्या लाभ ? कहने लगे कि बिल्कुल नहीं-
कलिकाल

एक-एक शब्द पर आप ध्यान दें, पहला शब्द है 'कलियुग' –
कलिकाल तुलसी से सठन्हि

'कलियुग में तुलसीदास जैसे दुष्ट व्यक्ति को' तो भरतजी आपसे मिल गये थे क्या? हाँ मिले थे। उन्होंने क्या किया?
कलिकाल तुलसी से सठन्हि
हठि राम सनमुख करत को। 2/235 छंद

इस कलियुग में यदि मैं श्रीराम के सामने पहुँचा तो श्रीभरत के साथ पहुँचा, नहीं तो पहुँच ही न पाता। फिर वही बात और वही दृष्टि। कलिकाल को वे त्रेतायुग से मिला करके एक नयी बात कह रहे हैं। तुलसीदासजी से यदि पूछा जाय कि आप यह कह रहे हैं कि श्रीभरत ने ही आपको श्रीराम के सम्मुख किया तो इसका क्या रहस्य है? और भी कितने पात्र हैं! भरत को ही आप इतना महत्त्व क्यों दे रहे हैं? गोस्वामीजी ने बड़ी मीठी बात कही। उन्होंने कहा कि अयोध्या की सारी समस्याएँ उलझ गयी थीं और श्रीभरत के साथ सब अयोध्यावासी चित्रकूट गये और भगवान् राम का दर्शन किया। तो यह संकेत तो मुझे भरत के चरित्र में, भरत के दर्शन में ही मिला कि वे अकेले श्रीराम के पास नहीं जाते, वे सारे समाज को श्रीराम से मिलाते हैं, श्रीराम के पास ले जाते हैं।

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