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धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :77
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9556

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साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं


हनुमानजी की इतनी अधिक पूजा क्यों होती है? इसका रहस्य क्या है? हनुमानजी अगर केवल महान् ही होते तो शायद छोटे विद्यार्थी से लेकर बड़ों तक के द्वारा उनकी पूजा न होती, पर जब सांकेतिक भाषा में हम यह पढ़ते हैं कि हनुमानजी की महत्ता यह है कि उन्होंने सुग्रीव से मित्रता की और फिर सुग्रीव को राम से मिला दिया, बल्कि श्रेष्ठतम रूप में कहना यह चाहिए कि राम को सुग्रीव से मिला दिया। श्रीराम से ही यह प्रस्ताव कर दिया कि महाराज ! पर्वत पर बन्दरों के राजा रहते हैं, आप जरा वहीं चलिए। राम को हँसी आ गयी कि यह तो तुमने नयी बात कही। मैं जाऊँ कि सुग्रीव आवें। हनुमानजी ने कहा कि प्रभु ! आपने यदि अपनी कथा न सुनायी होती तो मैं आपसे चलने का प्रस्ताव न करता, पर आपने एक ऐसी बात कह दी कि जिससे मेरा साहस बढ़ गया। मैंने आपसे जब यह पूछा कि क्या आप सारे संसार के स्वामी ईश्वर हैं? तब यदि आपने यह कह दिया होता कि हाँ! हाँ!! मैं सारे संसार का स्वामी ईश्वर हूँ तो मैं तुरन्त सुग्रीव को बुलाता कि तुम सारे संसार के स्वामी ईश्वर के पास आओ और उनको प्रणाम करो, पर आपने मेरी बात काट दी। आपने कहा कि नहीं, मैं सारे संसार का स्वामी ईश्वर नहीं हूँ-
कोसलेस दसरथ के जाए।
हम पितु बचन मानि बन आए।। 4/1/1

हम अयोध्या के राजा के पुत्र हैं और पिताजी का वचन मानकर वन में आये हुए हैं। बस महाराज! इस कथा ने तो मेरा दृष्टिकोण ही बदल दिया। अभी तक तो मैं यही समझता था कि ईश्वर की आज्ञा का पालन करना चाहिए, पर जब से आपने यह कह दिया कि आपने पिता की आज्ञा मानकर वन जाना स्वीकार कर लिया, तब मैं प्रसन्न हो गया कि अब तो आज्ञा मानने वाला ईश्वर आ गया है। आज्ञा देने वाला ईश्वर नहीं रह गया है। अगर आप पिता का वचन मानकर वन जा सकते हैं तो मेरा वचन मानकर वहाँ तक चले-चलिए। यह तो आपका ही परिचय है। वे सुग्रीव को मिला देते हैं। वे विभीषण को मिला देते हैं।

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