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धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :77
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9556

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साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं


जिसने बालि को मार दिया, वह तो मुझे भी मार देगा। फिर मैं क्या करूँगा? बस एक ही उपाय है कि-
सिला देइ तहँ चलेउँ पराई।। 4/5/8

बस! मैंने वहाँ एक शिला रख दी और भाग खड़ा हुआ। एक माह बाद बालि लौटकर आ गया, तब पूछा कि मेरे सिंहासन पर तुम कैसे बैठ गये? तब मुझे सिंहासन से उतार दिया। भगवान् ने कहा कि तब तुम कहीं गये तो बोला कि-
ताकें भय रघुबीर कृपाला।
सकल भुवन मैं फिरेउँ बिहाला।। 4/5/12

डर के मारे घर से भी भाग खड़ा हुआ और जब श्रीराम को भी देखा तो हनुमानजी से यही प्रस्ताव किया कि आप जाकर पता लगाइए। अगर इनको बालि ने भेजा हो तो वहीं से संकेत कर दीजिएगा कि बालि ने भेजा है। श्री हनुमानजी ने पूछा कि तुम क्या करोगे? बोले कि बस मेरे पास तो एक ही कला है-
पठए बालि होहिं मन मैला।
भागौं तुरत तजौं यह सैला।। 4/0/5

अब गोस्वामीजी की दृष्टि क्या है? कभी-कभी लोग यह मानकर चलते हैं कि यह व्यक्ति बड़ा साहसी है, बड़ा श्रेष्ठ है और यह व्यक्ति बड़ा दुर्बल है, बड़ा डरपोक है, पर यह आवश्यक नहीं है कि जो बड़ा साहसी व्यक्ति हो वह सदा अच्छा ही हो और यह भी नहीं है कि जो बड़ा डरपोक और दुर्बल दिखायी देने वाला व्यक्ति है, उसके जीवन का कोई सदुपयोग न हुआ हो, बल्कि कभी-कभी तो बिल्कुल उल्टा दिखायी देता है। गोस्वामीजी का अभिप्राय यह है कि प्रश्न यह नहीं है कि साहस श्रेष्ठ है कि भय श्रेष्ठ है? निन्दा तो भय की ही की जायेगी, पर साहस का भी दुरुपयोग किया जा सकता है और भय का भी सदुपयोग किया जा सकता है।

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