धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना भगवान श्रीराम सत्य या कल्पनाश्रीरामकिंकर जी महाराज
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साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं
मारीच बार-बार लौटकर पीछे देख रहा था, वह बड़ा प्रसन्न था। किसी ने मारीच से पूछा कि तुम इतने प्रसन्न क्यों हो रहे हो? उसने कहा कि एक प्रसन्नता तो यह है कि जब तक मैं भगवान् की ओर भागता रहा, तब तक मैं भगवान् को पकड़ने में समर्थ नहीं हुआ। परन्तु अब जब राम को अपने पीछे दौड़ते हुए देखता हूँ तो मुझे दो बातें लगीं। एक तो यह कि भगवान् के पीछे दौड़ने वाले तो बहुत से हैं, पर भगवान् जिसके पीछे दौड़े, ऐसा भी तो कोई होना चाहिए। चलिए ! यह सौभाग्य मुझे मिला और मानो श्रीराम जब कहते हैं कि तुम रुकते क्यों नहीं? तब मानो मारीच यह कहता है कि आपको पकड़ने योग्य तो मैं नहीं हूँ परन्तु आप ही यदि अपनी कृपा से मुझे पकड़ लें तो मेरी सार्थकता हो सकती है। गोस्वामीजी कहते हैं कि मारीच के खलत्व पर, उसके कपट पर श्रीराम प्रहार करते हैं और मारीच को अपने आप में लीन कर लेते हैं। मारीच का व्यक्तित्व द्वैत से भरा हुआ है, परन्तु उसका अन्त अद्वैत में परिणत हो जाता है।
इस सन्दर्भ में सुग्रीव के चरित्र पर दृष्टि डालें तो सुग्रीव समस्याओं से भागने वाला है। जब देखिए ! तब भाग खड़ा होता है। जब देखिए !! तब डरा हुआ दिखायी देता है। ऐसा लगता है कि बड़ा ही दुर्बल और बड़ा ही भगोड़ा पात्र है। आजकल जब किसी की निन्दा की जाती है तो कहा जाता है कि बड़ा ही पलायनवादी है तो 'रामायण' में यदि कोई पलायनवादी पात्र देखना हो तो सुग्रीव को देख लीजिए ! जब भी कोई बात आयी तो भाग खड़ा होता है। बालि मायावी से लड़ रहा है और रक्त की धारा निकली तो सुग्रीव पर क्या प्रभाव पड़ा? सुग्रीव ने स्वयं अपना संस्मरण राम को सुनाया कि-
निसरी रुधिर धार तहँ भारी।। 4/5/7
मैंने वहाँ रुधिर की धारा निकलती हुई देखी। तब श्रीराम ने पूछा कि तुम्हारे ऊपर इसकी क्या प्रतिक्रिया हुई? तो बताया कि मेरा तो सीधा-सा गणित था कि बालि मारा गया, उसी कारण से रक्तधारा निकली है। तो क्या तुम्हारे मन में बदला लेने की वृत्ति आयी? नहीं, नहीं, महाराज! बदला लेने की बात मेरे मन में नहीं आयी, मेरे मन में तो बस एक ही बात आयी। क्या? तो कहा-
बालि हतेसि मोहि मारिहि आई।। 4/5/8
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