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एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560

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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


'कहीं तुम्हारे धन पर तो दृष्टि नहीं उसकी?'

'नहीं अंकल, वह ऐसे नहीं। आप मुझपर भरोसा रखिए।'

'परन्तु मैं अपना निर्णय देने से पूर्व एक बार उससे मिलना चाहता हूँ।'

'तो बुलाऊँ?'

'नहीं, अब नहीं। मैं स्वयं मिल लूगा।'

'कब?' वह झट बोली।

बरमन साहब माधवी की इस व्याकुलता पर मुस्करा दिए।

माधवी अपनी बात पर स्वयं लज्जित हो गई और उनका उत्तर सुने बिना ही दूसरे कमरे में आ गई। न जाने प्रेम के उत्साह में वह उनसे क्या-क्या कह गई थी!

उसी साँझ टहलते हुए उसने विनोद से कहा-'जानते हैं...अंकल आपकी परीक्षा लेना चाहते हैं।'

'कैसी?' वह चौंकते हुए बोला।

'प्रेम की।'

'प्रेम की!' उसने आश्चर्य से माधवी के शब्द दोहराए।

'जी, वह स्वयं देखना चाहते हैं कि आपको मुझसे...'

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