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एकाग्रता का रहस्य

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9561

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एकाग्रता ही सभी प्रकार के ज्ञान की नींव है, इसके बिना कुछ भी करना सम्भव नहीं है।


8.    एकाग्रता विकसित करने के इच्छुक छात्रों को चाहिए कि वे गपशप को विष के समान हानिकारक समझकर उसका त्याग कर दें। वैसे मित्रों के साथ पाठ्य विषयों पर चर्चा निश्चित रूप से सहायक सिद्ध हो सकती है। योगियों ने आविष्कार किया कि हमारी मानसिक ऊर्जा का बहुत बड़ा हिस्सा अनावश्यक बकवादों में नष्ट हो जाता है। बेकार की गपशप में मन का संयम तथा शृखला नष्ट हो जाती है। एक दुर्बल तथा असम्बद्ध मन एकाग्रता के अयोग्य हो जाता है। दुर्बल शरीर तथा मन वाले व्यक्ति के लिए एकाग्रता टेढ़ी खीर है।

9.    किसी किसी छात्र की यह शिकायत है कि जब वे मन को एकाग्र करने का प्रयास करते हैं, तो उनहें सिरदर्द होने लगता है। इसका मुख्य कारण यह है कि उनके मस्तिष्क में यथेष्ट शक्ति नहीं है। मस्तिष्क को सुदृढ़ बनाने के लिए किसी योग्य व्यक्ति के मार्गदर्शन में कुछ विशेष योगासनों का अभ्यास करना चाहिए। इसके साथ-ही-साथ किसी अच्छे चिकित्सक की सलाह लेकर पौष्टिक भोजन, टानिक, च्यवनप्राश आदि का भी सेवन किया जा सकता है। प्रतिदिन उचित मात्रा में दूध, मक्खन तथा घी अवश्य लेना चाहिए। सच ही कहा है ‘सर्वं अत्यन्तं गर्हितम्’, तथापि ब्रह्मचर्य द्वारा रक्षित उर्जा ही सर्वोत्तम टानिक है। ब्रह्मचर्य पालन करने के लिए कुछ सहज सुझाव दिये जाते हैं –

  • अपने अन्तर में स्थित आत्मा के समक्ष सच्चे हृदय से ब्रह्मचर्य की शक्ति को बनाये रखने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
  • शरीर तथा मन को सदैव शुद्ध रखना चाहिये।
  • मनुष्य जैसे बाघों तथा भेड़ियों से दूर भागता है, वैसे ही सावधान रहना होगा कि कहीं हम किसी असंयमित तथा अनुचित कार्यों में लिप्त छात्रों की संगत में न पड़ जांय। वैसे हमें उनकी आलोचना करने के चक्कर में भी नहीं पड़ना चाहिये, क्योंकि उससे कुछ अन्य समस्यायें पैदा होंगी।

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