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एकाग्रता का रहस्य

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9561

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एकाग्रता ही सभी प्रकार के ज्ञान की नींव है, इसके बिना कुछ भी करना सम्भव नहीं है।

अभ्यास से ही पूर्णता की उपलब्धि

इन निरीक्षणों के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि एकाग्रता निरन्तर प्रयास के द्वारा ही प्राप्त की जाती है। अर्जुन के प्रश्न पर भगवान श्रीकृष्ण का यही उत्तर था कि, अभ्यास से ही पूर्णता की उपलब्धि होती है। अर्जुन का वह प्रश्न क्या था? 

वह था – “हे कृष्ण, यह मन अत्यंत चंचल और बलवान है। इसे नियंत्रण में रखना वायु को बस में रखने के समान है। अब ऐसे मन को नियंत्रण में भला कैसे लाया जा सकता है?”

भगवान श्रीकृष्ण का उत्तर था, “अर्जुन, जो तुम कह रहे हो वह सत्य है। इसे नियंत्रण में रखना सरल नहीं है, तथापि यह भी सत्य है कि ऐसा चंचल मन भी नियमित अभ्यास तथा वैराग्य के द्वारा बस में लाया जा सकता है।”

अर्जुन का प्रश्न बिलकुल स्वाभाविक है और भगवान श्रीकृष्ण का उत्तर भी वैसा ही सरल है। मन को नियंत्रण में लाने की समस्या कोई नई बात नहीं है, यह समस्या भी उतनी ही प्राचीन है, जितना कि मनुष्य स्वयं, भले ही आज की अनैतिक तथा असंयमित जीवनचर्या के फलस्वरूप इसमें कुछ वृद्धि हो गई हो। वस्तुतः अर्जुन एक बड़े ही साहसी तथा नीतिमान पुरुष थे और यदि अर्जुन के समान व्यक्ति का मन भी चंचल तथा बेकाबू हो सकता है, तो फिर आज के सुखान्वेषी और भोगात्मक लोगों के मन की तो बात ही क्या है।

जिन लोगों ने अपने मन को नियंत्रित करने का संकल्प कर लिया है, उनहें सर्वप्रथम मन की प्रकृति को स्पष्ट रूप से समझ लेना होगा, जिससे कि वे लोहा लेना चाहते हैं। मन बंदर के समान चंचल और मतवाले हाथी के समान शक्तिशाली है। इसे नियंत्रित करना अर्जुन के कथनानुसार वायु को पकड़ने के समान है। मन को संयमित करने के लिए वैसी ही निपुणता की आवश्यकता है, जैसी कि बन्दरों को पकड़ने एवं हाथियों को प्रशिक्षित करने में लगती है।

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