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गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563

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आज…. प्रेम किया है हमने….


पहला दिन।

‘‘देव! सुनो!‘‘ गायत्री ने देव को पुकारा

‘‘यहाँ पर रैगिंग तो नहीं होती? मुझे तो बड़ा डर लग रहा है!‘‘ गायत्री ने चिन्तित होकर पूछा।

‘‘मुझे भी बडा डर लग रहा है गायत्री!‘‘ सीधा साधा, भोला भाला देव बोला।

‘‘क्या आप मेरे साथ बैठ जाएंगें? अगर आप साथ रहेंगें तो मुझे कोई परेशान नहीं करेगा!‘‘ पतली दुबली गायत्री ने इच्छा जताई।

‘‘हाँ! ठीक है!‘‘देव ने हामी भरी।

जैसा डर था, वैसा कुछ नहीं हुआ। किसी ने कोई रैगिंग नहीं की। सारे बच्चे बहुत सीधे थे..... गाय जैसे सीधे। बिल्कुल भी खुराफाती नहीं। मैंने पाया....

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‘‘तो!..... क्या, सोचकर आये हो? टीचर बनोगे? आराम की नौकरी!....आराम से बैठकर कुर्सी तोड़ोगे ...पंखे की हवा खाओगे?....पानी पियोगे?‘‘ क्लास टीचर ने तेज आवाज में पूछा अपनी दायी आँख एक ओर दबाते हुए।

वो एक लम्बे कद का, डरावना सा भीमकाय आकृति वाला आदमी था। उसकी आँखें हमेशा लाल रहती थी...जैसे उसने अफीम, गाँजें का नशा किया हो।

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