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घाट का पत्थर

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :321
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9564

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लिली-दुल्हन बनी एक सजे हुए कमरे में फूलों की सेज पर बैठी थी।

‘अब तो कुछ आराम है?’

‘नहीं, वह तो मामूली....।’

‘इधर आओ।’

दीपक ने अपना हाथ आगे कर दिया। चमड़ी लाल होकर उभर आई थी। उबलता पानी था, जलना तो था ही।

‘लिली, जाओ, गीला आटा इस पर लगा दो, कहीं छाले न पड़ जाएं....’ डैडी बोले, ‘और देखो, बत्ती बंद कर दो, शायद नींद आ जाए।’

दीपक ने बत्ती बंद कर दी और दोनों कमरे से बाहर निकल गए।

‘कहां जा रहे हो?’ लिली ने दीपक से पूछा।

‘अपने कमरे में।’

‘ठहरो, देखती हूं शायद आटा मिल ही जाए।’

‘मुझे आवश्यकता नहीं।’ दीपक के स्वर में कठोरता थी।

‘देखो तो कितना जल गया है।’

‘हाथ जला है तो आटा लगा दोगी, परंतु दिल को....?’ और दीपक ने अपना मुंह फेर लिया।

‘दीपक, मै तुम्हारे सामने बहुत लज्जित हूं। बात वास्तव में....’

‘मुझे किसी सफाई की आवश्यकता नहीं। रात अधिक बीत चुकी है। जाओ सो रहो।’ और दीपक अपने कमरे की ओर बढ़ा।

‘बात तो सुनो दीपक!’

परंतु दीपक सीधा अपने कमरे में चला गया और उसने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया।

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