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गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577

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संवेदनशील प्रेमकथा।


चन्दर हँस पड़ा। और उसका मन धुलकर ऐसे निखर गया जैसे शरद का नीलाभ आकाश।

“अब पम्मी के यहाँ कब जाओगे?” सुधा ने शरारत-भरी मुसकराहट से पूछा।

“कल जाऊँगा! ठाकुर साहब पम्मी के हाथ अपनी कार बेच रहे हैं तो कागज पर दस्तखत करना है।” चन्दर ने कहा, “अब मैं निडर हूँ। कहो बिनती, तुम्हारे ससुर का क्या कोई खत नहीं आया।”

बिनती झेंप गयी। चन्दर चल दिया।

थोड़ी दूर जाकर फिर मुड़ा और बोला, “अच्छा सुधा, आज तक जो काम हो बता दो फिर एक महीने तक मुझसे कोई मतलब नहीं। हम थीसिस पूरी करेंगे। समझीं?”

“समझे!” हाथ पटककर सुधा बोली।

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