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गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577

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संवेदनशील प्रेमकथा।


सुधा कुछ बोली नहीं। आँचल से आँसू पोंछती हुई पायताने जमीन पर बैठ गयी। और अपने गले से एक बेले का हार उतारा। उसे तोड़ डाला और चन्दर के पाँव खींचकर खाट के नीचे जमीन पर रख लिये।

“अरे यह क्या कर रही हो, सुधा।” चन्दर ने कहा।

“जो मेरे मन में आएगा!” बहुत मुश्किल से रुँधे गले से सुधा बोली, “मुझे किसी का डर नहीं, तुम जो कुछ दंड दे चुके हो, उससे बड़ा दंड तो अब भगवान भी नहीं दे सकेंगे?” सुधा ने चन्दर के पाँवों पर फूल रखकर उन्हें चूम लिया और अपनी कलाई में बँधी हुई एक पुड़िया खोलकर उसमें से थोड़ा-सा सिन्दूर उन फूलों पर छिडक़कर, चन्दर के पाँवों पर सिर रखकर चुपचाप रोती रही।

थोड़ी देर बाद उठी और उन फूलों को समेटा। अपने आँचल के छोर में उन्हें बाँध लिया और उठकर चली...धीमे-धीमे नि:शब्द...

“कहाँ चली, सुधा?” चन्दर ने सुधा का हाथ पकड़ लिया।

“कहीं नहीं!” अपना हाथ छुड़ाते हुए सुधा ने कहा।

“नहीं-नहीं, सुधा, लाओ ये हम रखेंगे!” चन्दर ने सुधा को रोकते हुए कहा।

“बेकार है, चन्दर! कल तक, परसों तक ये जूठे हो जाएँगे, देवता मेरे!” और सुधा सिसकते हुए चली गयी।

एक चमकदार सितारा टूटा और पूरे आकाश पर फिसलते हुए जाने किस क्षितिज में खो गया।

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