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गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577

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संवेदनशील प्रेमकथा।


नहाकर वे आ रहे थे और दुर्गासप्तशती का कोई श्लोक गुनगुना रहे थे। कपूर को देखा तो रुक गये और बोले, “हैलो, हो गया वह टाइप!”

“जी हाँ।”

“कहाँ कराया टाइप?”

“मिस डिक्रूज के यहाँ।”

“अच्छा! वह लड़की अच्छी है। अब तो बहुत बड़ी हुई होगी? अभी शादी नहीं हुई? मैंने तो सोचा वह मिले या न मिले!”

“नहीं, वह यहीं है। शादी हुई। फिर तलाक हो गया।”

“अरे! तो अकेले रहती है?”

“नहीं, अपने भाई के साथ है, बर्टी के साथ!”

“अच्छा! और बर्टी की पत्नी अच्छी तरह है?”

“वह मर गयी।”

“राम-राम, तब तो घर ही बदल गया होगा।”

“पापा, पूजा के लिए सब बिछा दिया है।” सहसा सुधा बोली।

“अच्छा बेटी, अच्छा चन्दर, मैं पूजा कर आऊँ जल्दी से। तुम चाय पी चुके?”

“जी हाँ।”

“अच्छा तो मेरी मेज पर एक चार्ट है, जरा इसको ठीक तो कर दो तब तक। मैं अभी आया।”

चन्दर स्टडी-रूम में गया और मेज पर बैठ गया। कोट उतारकर उसने खूँटी पर टाँग दिया और नक्शा देखने लगा। पास में एक छोटी-सी चीनी की प्याली में चाइना इंक रखी थी और मेज पर पानी। उसने दो बूँद पानी डालकर चाइना इंक घिसनी शुरू की, इतने में सुधा कमरे में दाखिल, “ऐ सुनो!” उसने चारों ओर देखकर बड़े सशंकित स्वरों में कहा और फिर झुककर चन्दर के कान के पास मुँह लगाकर कहा, “चावल की नानखटाई खाओगे?”

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