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जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579

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बाबा ने दृष्टि ऊपर उठाई और माधो की ओर देखा – संकेत से ही उसे पूछने को कहा।

‘ऐसी क्या बात है जो आप इतने परेशान है?’

‘परेशान, नहीं तो।’

‘आप मुझसे छुपा रहे हैं। क्या आप मुझे अपना नहीं समझते?’

‘ऐसी तो कोई बात नहीं माधो, परंतु कभी-कभी सोचता हूँ कि मेरे बाद पार्वती का क्या होगा, उसका सहारा?’

‘पहले तो आपने कभी ऐसी बातें न सोची थीं।’

‘परंतु जीवन का क्या भरोसा, फिर अब वह सयानी भी तो हो गई है।’

‘उसके हाथ पीले कर दीजिए, एक दिन तो उसे परायी होना ही है। यह काम आप अपने ही हाथों।’

‘यही तो मैं सोचता हूँ माधो!’

‘तो शुभ काम में देरी कैसी?’

‘अभी वर की खोज करनी होगी।’

‘यह बात तो है ही – हाँ, आपका हरीश के बारे में क्या विचार है?’

बाबा हरीश का नाम सुनते ही आश्चर्य से माधो की ओर देखने लगे और फिर बोले - ‘हरीश, कैसी बात कर रहे हो माधो?’

‘क्यों? मैंने कोई अपराध किया है क्या?’

‘कहाँ हरीश माधो! कहाँ मेरी पार्वती।’

‘ओह तो क्या आप हरीश को पार्वती के योग्य नहीं समझते।’

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