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जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579

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सात

‘चार वैगन’ तो लोड हो गए।

राजन ने सीतलपुर के स्टेशन मास्टर की मेज पर लापरवाही से कुछ कागज रखते हुए कहा और पास पड़ी एक कुर्सी पर बैठ गया। स्टेशन मास्टर ने कोई उत्तर न दिया। वह तार की टिकटिक में संलग्न था। राजन चुपचाप बैठा उसके चेहरे को देखता रहा। थोड़ी देर बाद चुप रहने के बाद स्टेशन मास्टर ने अपना सिर उठाया और अपनी ऐनक कान पर लगाते हुए बोला -

‘जरा तार दे रहा था, अच्छा तो ‘चार’ लोड हो गए।’

‘जी – परंतु और कितने हैं?’

‘केवल दो – इतनी भी क्या जल्दी। अभी तो दस ही दिन हुए हैं।’

‘तो इतने कम हैं क्या? घर में माँ अकेली है और....’

‘और घरवाली भी।’

‘अभी स्वयं अकेला हूँ।’

‘तो तुम अभी अविवाहित हो? अच्छा किया जो अब तक विवाह नहीं किया, नहीं तो परदेस में इन जाड़ों की रातों में रहना दूभर हो जाता है।’

‘वह तो अब भी हो रहा है। सोचता हूँ, काम अधूरा छोड़ भाग जाऊँ, परंतु नौकरी का विचार आते ही चुप हो जाता हूँ।’

‘हाँ भैया, नौकरी का ध्यान न हो तो हम इस जाड़े में यूँ ही बैठे रात-दिन क्यों जुटे रहें – देखो, शादी तो तुम्हारे मैनेजर की है और मुसीबत हमारी।’

‘शादी हमारे मैनेजर की? आप क्या कह रहे हैं।’ राजन ने अचम्भे से पूछा – मानों उसके कानों ने कोई अनहोनी बात सुन ली हो।

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