लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान

जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

253 पाठक हैं

हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना

‘तुम्हें यह बातें शोभा नहीं देतीं – यह सब अंधविश्वास की बातें हैं, दिल की दुनिया इसे नहीं मानती।’

पार्वती भय के मारे दीवार से जा लगी।

राजन फिर उसकी ओर लपका – पार्वती क्रोध से चिल्लाई –

‘राजन मालिक से नहीं तो भगवान से डरो। यदि भगवान का भी कोई भय नहीं तो उस मासूम से डरो – जिसकी मैं माँ बनने वाली हूँ, आखिर तुम्हारी भी तो कोई माँ थी।’ माँ का नाम सुनते ही राजन खड़ा हो गया। उसने अपनी दृष्टि धरती में गड़ा दी। पार्वती अपने को संभालते हुए एक कोने में चली गई।

राजन अब पार्वती की ओर न देख सका। उसे अब उससे भय-सा लगने लगा। वह चुपचाप धीरे-धीरे पग उठाता हुआ सीढ़ियाँ उतरने लगा। अंतिम सीढ़ी पर रुककर एक बार मन-ही-मन पार्वती को प्रणाम किया और दबी आवाज में बोला-

‘धन्य हो देवी! क्षमा करो! तुम्हें मैं समझ न सका।’

राजन जब बाहर निकला तो बच्चों की एक भीड़ उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। उसे इस हालत में देख सब हँसने लगे।

घर पहँचकर उसने कुछ आवश्यक वस्तुएँ एक बैग में डालीं – वह वहाँ से कहीं दूर चला जाएगा। वह आज पराजित हुआ था और एक निर्लज्ज की भांति वहाँ नहीं रहना चाहता था। अब उसके प्रेम में कलंक का धब्बा पड़ चुका था। उसने बैग उठाया और अंतिम बार घर की ओर देखा, फिर तुरंत बाहर निकल आया। आज वह सारी वादी से भयभीत था। उसने देखा दूर तक कोई न था। वह ‘सीतलवादी’ जाने वाले रास्ते पर हो लिया।

‘ज्यों-ही वह मंदिर की सीढ़ियों के पास से निकला, उसके पाँव वहीं रुक गए। न जाने क्या सोचकर उसने अपना बैग सीढ़ियों पर रख दिया और धीरे-धीरे मंदिर तक जा पहुँचा। मंदिर में कोई न था। शायद केशव भी किसी काम से बस्ती गया हुआ था।’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book