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जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579

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थोड़ी ही देर में वह मनुष्य राजन को साथ लिए मैनेजर के कमरे में पहुँचा। पत्र को चपरासी को दे दोनों पास पड़े बैंच पर बैठकर उसकी प्रतीक्षा करने लगे।

चपरासी का संकेत पाते ही राजन उठा और पर्दा उठाकर उसने मैनेजर के कमरे में प्रवेश किया। मैनेजर ने अपनी दृष्टि पत्र से उठाई और मुस्कुराते हुए राजन के नमस्कार का उत्तर दिया।

‘कलकत्ता से कब आए?’

‘अभी सीधा ही आ रहा हूँ।’

‘तो वासुदेव तुम्हारे चाचा हैं?’

‘जी....’

‘तुम्हारा मन यहाँ लग जाएगा क्या?’

‘क्यों नहीं! मनुष्य चाहे तो क्या नहीं हो सकता।’

‘हाँ यह तो ठीक है – परंतु तुम्हारे चाचा के पत्र से तो प्रतीत होता है कि आदमी जरा रंगीले हो। खैर... यह कोयले की चट्टानें शीघ्र ही तुम्हें कलकत्ता भुला देंगी।’

‘उसे भूल जाने को ही तो यहाँ आया हूँ।’

‘अच्छा – यह तो तुम जानते ही हो कि वासुदेव ने मेरे साथ छः वर्ष काम किया है।’

‘जी....!’

‘और कभी भी मेरी आन और कर्त्तव्यों को नहीं भूला।’

‘आप मुझ पर विश्वास रखें- ऐसा ही होगा।’

‘मुझे भी तुमसे यही आशा थी। अच्छा तुम अभी विश्राम करो। कल सवेरे ही मेरे पास आ जाना।’

राजन ने धन्यवाद के पश्चात् दोनों हाथों से नमस्कार किया और बाहर जाने लगा।

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