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जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579

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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना

राजन मुस्कुराता हुआ उसके पास जा खड़ा हुआ और हाथ से उसकी ठोड़ी अपनी ओर फेरते हुए बोला –

‘पार्वती? मैंने आज जाना कि क्रोध के आवेश में तुम और भी सुंदर दिखाई देती हो।’

पार्वती थोड़ा मुस्कुराई, फिर बोली - ‘चलो हटो, बात तो यूँ बदलते हो कि कोई कुछ न कह सके।’

‘पार्वती सच मानो कल छुट्टी दो घंटे देर से हुई।’

‘भला वह क्यों?’

‘काम अधिक था, नहीं तो...।’

‘नहीं तो क्या? घंटों प्रतीक्षा करनी पड़ी।’

‘जो प्रतीक्षा में आनंद है वह मिलन में नहीं है।’

‘यह बेतुकी बातें तुम ही जानो – क्यों आज काम पर नहीं गए।’

‘छुट्टी है।’

‘काहे की?’

‘जब मुझे पता चला कि मेरे न जाने से तुम नाराज होकर चली गई हो तो मैंने आज सारा दिन तुम्हारे पास रहने के लिए ही सब कुछ किया।’

‘तुमने कैसे जाना कि मैं नाराज होकर चली आई।’

‘इसकी साक्षी, वह कलियाँ हैं जो निराशा के आवेश में मसल दी गई थीं।’

और राजन ने जेब से मुरझाई हुई गुलाब की कलियाँ निकाल कर सामने रख दीं। पार्वती उनको देखकर बोली, ‘तो तुम मंदिर गए थे?’

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