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कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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१०८

ये जिस्म का मकान घड़ी दो घड़ी का है


ये जिस्म का मकान घड़ी दो घड़ी का है
तू मान या न मान घड़ी दो घड़ी का है

जो चार दिन मिले हैं तुम्हें प्रेम से जियो
हिन्दू या मुसल्मान घड़ी दो घड़ी का है

दौलत का हो ग़ुरूर या शोहरत का हो नशा
करना नहीं गुमान घड़ी दो घड़ी का है

कुछ भी नहीं मिलेगा अगर छोड़ दी ज़मीं
ख़्वाबों का आस्मान घड़ी दो घड़ी का है

उसकी वफ़ाओं पर हो हमें लाख इत्मिनान
लेकिन ये इत्मिनान घड़ी दो घड़ी का है

घबरा न जाना गर कोई मुश्किल भी आ पड़े
तेरा ये इम्तेहान घड़ी दो घड़ी का है

हर आदमी को धूप में चलना है ‘क़म्बरी’
कोई भी सायबान घड़ी दो घड़ी का है

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