लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> कह देना

कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

278 पाठक हैं

आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें


इन्हीं बैठकों में एक दिन ये तय किया गया कि यहाँ रोज़ सब आते ही हैं क्यूँ न कोई संस्था का गठन कर लिया जाये ताकि कुछ काम भी होता रहे। इस तरह ‘कविकुल’ साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था का गठन हुआ। संस्था व्दारा यह तय किया गया कि जो कवि आयोजनों में जाते हैं वे पारिश्रमिक का दस प्रतिशत पैसा संस्था को दें। यह सिलसिला काफ़ी दिनों तक चलता रहा और दो ग़ज़ल संग्रह ‘कानपुर के ग़ज़लगो कवि’ एवं ‘बकप चाचा’ प्रकाशित हुये।

उनके मर्णोपरान्त भाई मुनेन्द्र शुक्ल जी और भाई देवल आशीष जी ने बड़े जतन करके पाँखी प्रकाशन, दिल्ली से उनकी ग़ज़लों का संग्रह ‘परिंदे क्यूँ नहीं लौटे’ प्रकाशित करवाया जिसके कुछ शेर दे रहा हूँ :

आपको कुछ दूर पर जब रौशनी मालूम हो
यूँ समझिये हम दिखाई दे रहे हैं दूर से

अल्लाह सा मुंसिफ़ कहीं हमने नहीं देखा
वो बख़्श भी देता है तो देता है सज़ा भी
मंदिरों में आप मन चाहे भजन गाया करें
मैकदा ये है यहाँ तहज़ीब से आया करें

अपने कुनबे को गिना दो-चार बार
लीजिये मर्दुमशुमारी हो गयी

मेरी दिन भर की उदासी को समझ लेता है वो
शाम होते ही बुला लेता है मयख़ाना मुझे

ये हिदायत एक दिन आयेगी हर स्कूल में
मुल्क की तस्वीर बच्चों को न दिखलाया करें

मुझे आवाज़ तो दी थी ज़माने ने बहुत पहले
बड़ी मुश्किल से मैं जज़्बात के घर से निकल पाया

ऐसे न जाने कितने अश्आर उनके ग़ज़ल संग्रह में हैं साथ ही उनके कुछ व्यंग्य लेख भी हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai