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कटी पतंग
कटी पतंग
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
अंजना कुछ देर तक उन लोगों की बातें और रोने-धोने की चीख-पुकार सुनती रही और फिर न जाने क्या सोचकर वह उसी अँधेरे मे सरकती हुई जीने से नीचे उतर गई। उसके कदम बोझिल होते जा रहे थे, दम टूटता जा रहा था, लेकिन वह बढ़ती जा रही थी। वह कहीं दूर भाग जाना चाहती थी, बहुत दूर, सैकड़ों-हजारों मील दूर-एक ऐसी जगह जहां उसे कोई पहचान न सके, जहां वह सबके लिए अपरिचित हो, जहां लोगों के व्यंग्य-बाण उसे छेद न सकें।
वह बढ़ती गई सुनसान और शांत गलियों में... उन वीरान रास्तों पर जिनकी कोई मंजिल नहीं थी। वह उस बस्ती से दूर भाग जाना चाहती थी जहां से अभी तक उसे घृणा की गन्ध आ रही थी, जहाँ उसे प्यार के बदले धोखा मिला था और जहां पल-भर में उसकी दुनिया तहस-नहस हो गई थी।
जब वह गंगापुर के छोटे-से स्टेशन पर आई तो अगली गाड़ी आने में अभी दो घंटे की देर थी। रात की कालिमा भयानक हो चली थी। प्लेटफार्म पर सिवाय रेलवे कर्मचारियों के दूसरा कोई दिखाई नहीं देता था। वह चुपचाप एक कोने में पड़े बेंच पर जा बैठी।
रात की इस स्तब्धता को चीर रही थी तो बस एक आवाज पुराने इंजन की, जो वहां से कुछ दूर शंटिंग कर रहा था और लाइन पर खड़े मालगाड़ी के खाली डिब्बों को धकेलकर धीरे-धीरे एक ओर ले जा रहा था। जैसे ही किसी खाली डिब्बे को धक्का लगता, वह पटरी पर रेंगता हुआ दूर तक चला जाता। अंजना अपने-आपको भी कुछ देर के लिए उस खाली डिब्बे की तरह समझने लगी जिसे उसके भाग्य ने शंट करके जीवन की विचित्र पटरी पर धकेल दिया था।
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