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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''लेकिन अब यह तुम्हारी आशाओं को जरूर मिटा देगी अंजू!''

''बनवारी!''

''मुझे आशा नहीं थी अंजू कि तुम मेरे मजाक को इतनी संजीदगी से लोगी। मुझे समझे बिना वह कदम उठा लोगी जो तुम्हें कहीं का नहीं रखेगा।''

''आज तो तुम सचमच बहक गए हो। तुमने ज्यादा पी ली है।'' उसने बनवारी के हाथ से खाली गिलास ले लिया और उसे अपने हाथों में थामे-थामे फिर बोली-''मेरे प्यार का इम्तहान मत लो बनवारी! मुझे अपनी मजबूत बांहों का सहारा दो। अब मुझमें बहस की ताकत नहीं रही। देखो बनवारी! विरह के दुःख ने मेरा अंग-अंग तोड़कर रख दिया है।'' यह कहते हुए उसने बनवारी के गले में बांहें डाल दीं।

बनवारी ने उसकी बांहों को गले से हटाकर झटक दिया और बोला-''लौट जाओ अंजू! जिस प्यार का नाम लेकर तुम मेरा बोझ बनना चाहती हो, मैं अभी उसके योग्य नहीं। अगर तुम्हारे दिल में प्यार का आदर होता तो तुम सगाई से पहले ही अपने मामा को अपने निश्चय से सूचित कर देतीं।'

''तुम्हें मालूम तो है कि मैंने कई बार उनसे कहने की कोशिश की, लेकिन साहस नहीं हुआ।''

''तो आज घर से भागकर तुमने उनकी कौन-सी इज्जत बढ़ाई है! इससे तो यही अच्छा था कि उन्हें साफ-साफ अपना फैसला सुना देतीं। भरी बिरादरी में अपने प्रेम को स्वीकार कर लेतीं।''

''इससे बड़ी बदनामी होती।''

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