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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


इधर शबनम पानी-पानी हो गई और उसने अपने हाथों में पकड़े हुए कपड़े में अपना मुंह छिपा लिया।

अंजना ने उन्हीं घातक नजरों से बनवारी की ओर देखा जो बुत बना उसे निहार रहा था। अपनी सफाई में कुछ कहने के लिए उसके होंठ खुले ही थे कि अंजना ने गालियों की बौछार कर दी और अंत में अपने बिफरे हुए सांसों से वह केवल इतना ही कह सकी-''काश तुम्हारे चेहरे का नकाब एक दिन पहले हट जाता!'' और वह तड़पकर बाहर जाने के लिए पलटी। बनवारी ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन कंधा झटककर वह बड़ी तेजी से सीढ़ियां उतर गई।

बनवारी के पांव तले की जमीन खिसक गई। उसकी मुद्रा गभीर हो गई। वह रेंगता हुआ सा खिड़की के पास चला गया। पट खोलकर नीचे झांका तो अंजना टैक्सी में बैठकर जा रही थी।

सहसा किसीका कोमल हाथ उसके कंधे पर आया। यह शबनम थी जिसने बनवारी के पास आकर उसके मुर्दा शरीर में पुन: जान डालने का फैसला कर लिया था। शबनम ने अलमारी से दूसरी बोतल निकाली और एक डबल पेग उसके आगे कर दिया। बनवारी ने मुड़कर शबनम की ओर देखा जिसके होंठों पर चंचल मुस्कराहट नाच रही थी।

''लो, दो घूंट और लो। पहला नशा तो हिरन हो गया होगा!'' बनवारी ने मुस्कराकर उसके गाल पर चुटकी काट ली और दूसरे ही क्षण गिलास में छलकती हुई सुरा को कण्ठ में उंडेल लिया।

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