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खामोश नियति

रोहित वर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :41
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9583

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कविता संग्रह

फरेब

फरेब ने अपनी तमाम ताक़त और जंजीरों से जकड लिया। फरेब के सिपाही ने आस पास के पहरे को इतना कड़ा कर दिया कि सच्चाई और उजाले की किरण उस तक पहुँचना नामुमकिन तो नहीं लेकिन कठिन है। फरेब और झूठ हर वक्त सच्चाई से परे था। यकीन है उसको सब कुछ, पर भ्रम उसका टूटा जब एक रात तेज रोशनी में उसने अपने आप को देखा, अपनी हक़ीकत को देखा, जो वो खूनी लाल आँखें जो अपने आप को काफ़ी देर घूर कर देख रही हैं, माथे पर अजीब सी सिकन, परेशानी जब शक यकीन में बदल गया, इस जहांन के बाद एक दूसरा जहांन और भी है जो सिर्फ़ सच्चाई का पवित्र बंधन का, वहाँ मेरा बजूद तक नहीं......

फरेब ने पकड़ा इस कदर,

दामन भी छोटा सा लगने लगा,

दुश्मन यहाँ जिंदगी को और भी,

गम सा लगने लगा,

छोड़ दिया दामन,

जब खुद को खुद से मिलते देखा,

भूल गया सब कुछ जब,

दूसरे जहाँ में जाते देखा……

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Rohit Kumar

Respected Sir/Madam, I am very much thankful for this book....