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खामोश नियति

रोहित वर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :41
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9583

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कविता संग्रह

आखिरी मुलाकात

सपने बुनते बुनते कब शाम हो गई पता हीह नहीं चला, ह्वा हो दावत देते हुये तूफान में बदल गई, रेतीले तूफान इस कदर अपनी पूरी ताक़त लगाकर रोकने की कोशिश करते रहे, बस मुकाम तक लेकर जाने की ज़रूरत थी, ठहर कर फिर से कोशिश डुबोने की कश्ती की....रेतीले तूफ़ानो में, ज ह्वा के हल्के झोंके थे आज तूफान में तब्दील हो गये थे, रोकने एको उस पार जाने से ..... जहाँ आखिरी राह है, आखिरी मुकाम है जिंदगी का ……..

ख़यालों के टुकड़ों से सपने बुने,

रात यूँ ही कटती रही,

मंज़िल कदम दो कदम है,

पास दीवार खड़ी रही,

रेत के समंदर को पार करने की इल्तिजा है,

तो कांपती हुई कश्ती है,

बिना राह के हवायें चल रही हैं,

हम उन्हें मुकाम तक लेकर जायेंगे,

मंज़िल बस पास ही है,

हम वहीं ठहर जायेंगे,

रेत का जहान,

रेतीले तूफान,

रेतीले आशियाँ, पल भर की जिंदगी,

 और तमाम हवा के झोंके,

कोशिश में गिराने की.....

जिंदगी की अदालत के फैसलों में,

मुजरिम भी हैं, बेगुनाह भी,

उनमें से तुम कौन हो,

सजायें मुजरिमों की बहुत हैं,

फिर तुम्हारी सज़ा क्या?

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Rohit Kumar

Respected Sir/Madam, I am very much thankful for this book....