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कलंकिनी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :259
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9584

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यह स्त्री नहीं, औरत के रूप में नागिन है…समाज के माथे पर कलंक है।

‘आप…।’ नीरा का हाथ रुक गया।’

‘जी, पास ही रहता हूं, एक मित्र के यहां…पैदल ही चला जाऊंगा।’

‘नहीं, पैदल क्यों जाएंगे, टैक्सी ले जाइए न…मैं किराया चुकाए देती हूं।’

यह कहते हुए नीरा ने टैक्सी ड्राइवर को पैसे देकर समझा दिया कि वह युवक को उसके घर तक छोड़ आए।

‘धन्यवाद।’ टैक्सी में फिर बैठते हुए युवक बोला।

‘धन्यवाद! धन्यवाद तो आपका मुझे करना चाहिए जो इतनी रात साथ दिया वरना मैं तो अकेले आने से घबरा रही थी।’

ड्राइवर ने टैक्सी स्टार्ट की। नीरा ने युवक से पूछा—

‘क्षमा कीजिए…मैं आपका नाम पूछना तो भूल ही गई।’

‘मुझे पारस कहते हैं…पारस खन्ना…।’ और उसके यह कहते ही टैक्सी घर्र-घर्र करती हुई बंगले से बाहर निकल गई।

नीरा मूर्तिमान सोचों में खोई कुछ देर वहां खड़ी रही। उसकी दृष्टि बंगले के गेट पर पड़ी थी जहां से अभी-अभी टैक्सी पारस को लेकर बाहर निकली थी। ‘पारस’…यह नाम उसके मस्तिष्क में जाने क्यों एक झनझनाहट-सी उत्पन्न कर रहा था मानो अभी-अभी सपना देखती हुई उठी हो…एक मधुर सपना…और उसके दिल का नायक सहसा उसे झिंझोड़कर रैन के पदों में ओझल हो गया हो।

सहसा उसके विचार छिन्न-भिन्न हो गए। सेठ द्वारकाप्रसाद की गाड़ी पानी के छींटे उड़ाती हुई पार्लर में आ ठहरी थी। नीरा एक ओर हटकर खड़ी हो गई और उनके गाड़ी से उतरते ही बरस पड़ी, ‘अच्छा मूड खराब किया आपने आज…आप गाड़ी लाने का वचन न देते तो मैं न आती आज…।’

‘क्षमा करना नीरू।’ द्वारकादास ने अपराधियों की-सी खिसियानी हंसी-हंसते हुए कहा, ‘कुछ तो देर हो गई और कुछ गाड़ी ने भी धोखा दे दिया…साइलेन्सर में पानी चले जाने से कितनी देर तक गाड़ी स्टार्ट ही न हो सकी।’

‘कितनी बार कहा इस छकड़े से पीछा छुड़ा लीजिए।’ उसके स्वर में रोष था।

‘क्या कह रही हो…ब्यूक तो शाहाना सवारी है…।’

‘वह शाहाना सवारी कैसी जिसमें गुण अट्ठारहवीं शताब्दी के हों।’

‘अच्छा अब क्रोध को थूक दो…अबके इसने कोई धोखा दिया तो सदा के लिए तलाक दे दिया जाएगा।’

यह कहते हुए द्वारकादास ने नीरा की कमर में हाथ डाला और प्यार से उसे भीतर कमरे में ले गया।

जब ड्राइवर गाड़ी से सामान उठाकर भीतर लाया तो नीरा का मन प्रसन्नता से खिल उठा। अंकल उसके लिए ट्रांजिस्टर का उपहार लाए थे, एक बड़ा सुन्दर-सा ट्रांजिस्टर। उल्लासमय हृदय से नीरा ने ट्रांजिस्टर उठाया और नाचती-उछलती हुई अपने कमरे में चली गई।

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