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कलंकिनी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :259
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9584

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यह स्त्री नहीं, औरत के रूप में नागिन है…समाज के माथे पर कलंक है।

कोई आधा घंटा बाद पारस अपने कमरे में लौटा। उसके मुख पर घबराहट के चिह्न देखकर नीरा प्रश्नसूचक दृष्टि से उसे देखने लगी। उसका भय ठीक था।

‘नीरा! आज शायद हम न जा सकें…।’ उसने निराश मन से नीरा को देखा।

‘क्यों?’ कठोर स्वर में झट उसने पूछा। उसके प्रश्न के ढंग से प्रतीत होता था कि वह इस बात को पारस के उस कमरे में जाने से पहले ही जानती थी।

‘अंकल को अचानक गुर्दे की पीड़ा का दौरा उठा है।’ पारस ने उसकी कांपती दृष्टि और थरथराते होंठों से उसके मनोभाव का अनुमान लगाया।

‘तो…?’

‘डाक्टर ने इंजेक्शन दिया है, यदि उनकी हालत न संभली तो हमें आज का प्रोग्राम कैंसिल करना पड़ेगा।’

‘किन्तु अम्बाला जाना तो आवश्यक है।’

‘है…।’ किन्तु अंकल को इस दशा में छोड़कर जाना किसी प्रकार उचित नहीं…।’

‘ओह…।’ निराशामय स्वर में उसने एक आह भरी।

‘हां नीरू। अभी ब्याह में चार दिन शेष हैं—एक आध दिन रुकने से कोई हानि नहीं होगी—मां को तार दिये देता हूं।’

‘अंकल ने क्या कहा है? नीरा ने पूछा।

‘वह क्या कहेंगे, वह तो पीड़ा में कराह रहे थे—दो-एक बार तुम्हें पूछा है—आओ…।’

नीरा ने कोई उत्तर न दिया और चुपचाप पारस के साथ अंकल के कमरे में आ गई। द्वारकादास आंखें बंद किए दो तकियों का सहारा लिए लेटा था। उसके मुख से प्रतीत होता था कि पीड़ा ने उससे कितना कठोर व्यवहार किया है। इंजेक्शन के प्रभाव ने उसकी पलकों को बोझिल बना दिया था।

नीरा और पारस को निकट खड़े अनुभव करके उसने धीरे से पलकें उठाईं और फिर बंद कर लीं। नीरा ने आगे बढ़कर धीरे से पूछा—

‘कैसी तबियत है आपकी अंकल।’

द्वारकादास ने फिर आंखें खोलीं और गहरी दृष्टि से उसे देखते हुए बोला—‘पीड़ा कुछ घट गई है—शायद इंजेक्शन का प्रभाव है।’

‘‘चिन्ता न कीजिये, डाक्टर कह रहा था पीड़ा शीघ्र ही चली जाएगी।

द्वारकादास कुछ देर आंखें बंद करके चुप लेटा रहा फिर बोला—‘औषधि नशे वाली है—सोचता हूं दो-चार घंटे बाद इसका प्रभाव कम हुआ तो फिर क्या होगा, अब तो यह प्राण लिए बिना नहीं जाएगी।’

‘घबराइए नहीं अंकल। साहस रखिए।’ नीरा ने सांत्वना दी।

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